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________________ ३२ . प्रांणप्रीया दीठी तव झांखी, जिम वाद लमांहि चंद; कुमार कहइ सुंणि सुंदरि, साचउ तुझ आव्यऊ दंद. पूरव भवनी वइरणि कोई, योगिणि मतिनी ऊंधी; राय नई कहइ वहु जे छ इ ताहरी, ते तउ राक्षसी सूधी. चर मूंकी राजांई जोवराव्यउं, ते तां जाण्य उं साचउं; हिवइ तूं प्रगट थयउ जनमाहि, मई तु बहु दिन सांख्य उ. हुं तां तुझ दुख देखी न सकुं; वरि मे छंडउ प्रांण; सुंदरि कहइ स्वामी धीर थायउ, मुझ नई करम प्रमाण. ढाल-१७ राग सबाब जूउ० जूउ०. २ बोलीउ ते प्रहलाद वांणी- ढ़ाल हिवइ ते रुठ उ नरेंस, सेवकनई दीइ आदेश; आंणीनई षेस जूउ करमनउ महिमाय, जेणई रोल्या राय रंक. अ भुंडीनइं केसई धरी, बंधनि बांधी खरी; काढउ नई पहरी. भमाडीनइं ठांमोठांमई, देईनइं अति अपमानि; हणउ समशांनि. इम सुणी कनकरथ, मरवा थ य उ समरथ ; ग्रही राख्य उ हत्थि. हवई तेह सती धरी, पाटा पाडया सात सिरी; दुःख विधूरी. चुनउ ते चोपडयउ सीसई, बीलीफल झूबख दोसई; विकृत वेसई जूउ० ३ जूउ० ४ जूउ० ५ जूउ० ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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