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________________ प्रस्तुत प्रथम भागमें १. रत्नकरण्डक, २. स्वामिकात्तिकेयानुप्रेक्षा-गत अंश, ३.महापुराण-गत अंश, ४. पुरुषार्थसिध्द्युपाय, ५. यशस्तिलक-गत अंश, ६. चारित्रसार-गत अंश, ७. अमितगतिश्रावकाचार, ८. वसुनन्दिश्रावकाचार और ९. सावयधम्मदोहा, ये नौ श्रावकाचार संकलित है। द्वितीय भागमें १ सागारधर्मामृत, २. धर्मसंग्रहश्रावकाचार, ३. गुणभूषण श्रावकाचार, ४. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, ५. धर्मपीयूष श्रावकाचार, ६. व्रतोद्योतन श्रावकाचार, ७. लाटीसंहिता, ८. उमास्वाति श्रावकाचार, ९. पूज्यपाद श्रावकाचार आदि रहेंगे। चारित्र प्राभृत, तत्त्वार्थसूत्र, पद्मचरित आदि से उद्धृत अंश परिशिष्ट में रहेंगे। इस प्रथम भागमें जिन श्रावकाचारोंका संग्रह किया गया है, वे सभी विभिन्न स्थानोंसे पूर्व प्रकाशित है किन्तु सभीके मूल पाठोंका संशोधन और पाठ-मिलान ऐ. प. दि. जैन सरस्वती भवनके हस्तलिखित मूल श्रावकाचारोंसे किया गया है । यशस्तिलकगत श्रावकाचार 'उपासंकाध्ययन' के नामसे भारतीयज्ञानपीठसे प्रकाशित हुआ है, उसीके आधार परसे केवल श्लोकोंका संकलन प्रस्तुत संग्रहमें किया हैं । पूजन सम्बन्धी गद्यभाग एवं कथानकोंका गद्य भाग स्व. डॉ. उपाध्येके परामर्श से नहीं लिया गया है। इस भागके साथ प्रस्तावना नहीं दी जा रही हैं । हाँ, दूसरे भागके साथ विस्तृत प्रस्तावना दी जावेगी, जिसमें संकलित श्रावकाचारोंकी समीक्षाके साथ श्रावकाचारका क्रमिक विकास भी दिया जावेगा। तथा संकलित श्रावकाचारोंके कर्ताओंका परिचय भी दिया जावेगा । सम्पादनमें प्राचीन प्रतियोंका उपयोग किया गया है, उनका भी परिचय दूसरे भागमें दिया जायेगा। दूसरे भागमें ही समस्त श्रावकाचारोंके श्लोकोंकी अकारादि-अनुक्रमणिका भी दी जायगी, एवं अन्य आवश्यक पारिभाषिक शब्दकोष आदि भी परिशिष्ट में ही दिये जावेंगे। अन्तमें मै संस्थाके मानद मंत्री, स्व. डॉ. उपाध्ये और श्रीमान् पं. कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्रीका बहुत आभारी हूँ, जिन्होंने इस प्रकाशनके लिए समय-समय पर सत्परामश दिया हैं । श्री. पं. महादेवजी चतुर्वेदीका भी आभारी हूँ कि उन्होंने प्रूफ-संशोधनका भार स्वीकार करके प्रथम भागको शीघ्र प्रकाशित करने में सहयोग दिया है । शुद्ध और स्वच्छ मुद्रणके लिए वर्द्धमान मुद्रणालयका भी आभारी हूँ। ऐ. पन्नालाल दि. जैन सरस्वती -हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री २।२।७६ प्रकाशकीय निवेदन चरणान योगके अनेक श्रावकाचारोंका संग्रह रूप यह ग्रंथ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । इसका प्रथमसंस्करण अल्प कालमें समाप्त होकर यह द्वितीय संस्करण ही इसकी उपयोगिता को सूचित करता हैं । इसका पठन पाठन कर जिनवाणी के प्रचार में मुमुक्षु पाठक सहयोग देवें यही नम्र प्रार्थना है। मंत्री रतनचंद सखाराम जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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