SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३० ] अष्टसहस्री [ कारिका १६ [ सर्व वस्वक्तव्यं कथं? इति प्रश्ने सति जैनाचार्या उत्तरयंति यत प्रत्येक शब्द एकमेवार्थ ब्रूते न चानेकान् । ] कथमवक्तव्यं सर्वमिति चेदुच्यते, निष्पर्यायं भावाभावावभिधानं नाजसैव विषयीकरोति, शब्दशक्तिस्वाभाव्यात, सर्वस्य 'पदस्यकपदार्थविषयत्वप्रसिद्ध:2 सदिति पदस्यासदविषयत्वात, असदिति पदस्य च सदविषयत्वात्, अन्यथा तदन्यतरपदप्रयोगसंशयात्, गौरिति पदस्यापि दिगाद्यनेकार्थविषयतया प्रसिद्धस्य तत्त्वतोनेकत्वात्सादृश्योपचारादेव तस्यैकत्वेन व्यवहरणादन्यथा सर्वस्यकशब्दवाच्यत्वापत्तेः प्रत्येकमप्यनेकशब्दप्रयोगवैफल्यात् । यथैव हि शब्दभेदाध्र वोर्थभेदस्तथार्थभेदादपि शब्दभेदः सिद्ध एव, अन्यथा वाच्यवाचकनियमव्यवहार [ सभी वस्तुयें अवक्तव्य कैसे हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते हैं कि प्रत्येक शब्द एक ही अर्थ को कहता है अनेक को नहीं । शंका-सभी वस्तु अवक्तव्य किस प्रकार से है ? समाधान-कहते हैं, निष्पर्याय (क्रम रहित) भाव और अभाव को कोई भी शब्द एक काल में ही विषय नहीं कर सकता है क्योंकि शब्द की शक्ति का स्वभाव ही ऐसा है। अर्थात् शब्द में ऐसी ही शक्ति है कि एक समय में एक शब्द एक ही धर्म को कहता है। सभी पद एक-एक रूप से अपने एक ही अर्थ को कहते हैं यह बात प्रसिद्ध है। 'सत्' यह पद 'असत्' को विषय नहीं करता है एवं 'असत्' यह पद सत् को नहीं कह सकता है अन्यथा यदि एक ही पद को अनेक अर्थ का कहने वाला मानोगे तब तो उन सत् और असत् दोनों ही पदों में से किसी एक पद के प्रयोग से संशय हो जावेगा । अर्थात सत् शब्द के कहने पर इसका वाच्य अर्थ सत् है या असत् है ? अथवा असत् शब्द के कहने पर इसका वाच्यार्थ सत् है या असत् ? ऐसा संशय हो जावेगा, किन्तु सत् या असत् शब्द में संशय नहीं देखा जाता है, अतएव शब्द में एक ही अर्थ को प्रतिपादन करने की शक्ति स्वभावतः है। शंका-यदि आप ऐसा कहें कि एक पद में युगपत् अनेक अर्थों को प्रतिपादन करने की योग्यता नहीं है तब तो दिशा आदि अनेक अर्थों को एक साथ प्रतिपादन करने वाले गौ आदि पदों का उच्छेद-विनाश ही हो जावेगा। समाधान- नहीं, दिशा आदि अनेक अर्थों को विषय करने वाला अकेला एक ही 'गो' शब्द नहीं है किन्तु वास्तव में वे गो शब्द अनेक हैं अर्थात् संपूर्ण दिशा आदि के वाचक गो शब्द भिन्न-भिन्न ही हैं। इनमें जो एकत्व का प्रतिभास या एकरूप से व्यवहार होता है वह सादृश्य के उपचार से ही होता है। यदि ऐसा न माना जावे तब तो समस्त पदार्थों में एक शब्द से वाच्यहोने का प्रसंग प्राप्त हो 1 शब्दस्य । (दि० प्र०) 2 प्रत्येकम् । (ब्या० प्र०) 3 परमार्थतः । (दि० प्र०) 4 मा। शिष्ट लुप्तानां शब्दानां सारूप्यात् सादृव्यम् । (दि० प्र०) 5 भेदाभावे । (दि० प्र०) 6 पदार्थस्य । (दि० प्र०) 7 नियतः । (दि० प्र०) 8 सत्यः । समभिरूढनयापेक्षया। (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy