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________________ अर्थ सङ्कलना__कल्याणके कारणरूप प्रथम-तीर्थङ्कर श्रीऋषभदेवको, श्रीशान्ति नाथको, तदनन्तर मुनियोंमें श्रेष्ठ ऐसे श्रीनेमिनाथको, प्रकाशस्वरूप एवं सर्व सद्गुणोंके स्थानरूप श्रीपार्श्वनाथको तथा श्रीमहावीर स्वामीको मैं भक्तिपूर्वक वन्दन करता हूँ॥१॥ जिसका पार पाना कठिन है, ऐसे संसार-समुद्रके किनारेको प्राप्त किये हुए, देवसमूहसे भी वन्दनीय, कल्याणरूपी लताके विशाल कन्दके समान ऐसे सभी जिनेन्द्र मुझे शास्त्रका अनन्य साररूप अथवा परम-पवित्र मोक्षसुख प्रदान करें ॥२॥ श्रीजिनेश्वरदेवद्वारा प्ररूपित श्रुतज्ञान जो निर्वाण-प्राप्तिके मार्गमें श्रेष्ठ-वाहनके समान है, जिसने एकान्ता-वादियोंके सिद्धान्तोंको असत्य प्रमाणित किया है, जो विद्वानोंके भी शरण लेने योग्य है तथा जो तीनों लोकमें श्रेष्ठ है, उसको मैं नित्य प्रणाम करता हूँ॥ ३ ॥ ___मुचुकुन्द( मोगरा )के पुष्प जैसो, पूर्णिमाके चन्द्रमा जैसी, गायके दूध जैसी अथवा हिमके समह जैसी श्वेत कायावाली, एक हाथमें कमल और दूसरे हाथ में पुस्तकके समूहको धारण करनेवाली, कमलपर बैठी हुई सर्व प्रकारसे प्रशस्त ऐसी वागीश्वरी ( सरस्वती देवी ), हमें सदा सुख देनेवाली हो ॥ ४ ॥ सूत्र-परिचय__ प्रस्तुत सूत्र में चार स्तुतियाँ हैं । उनमेंसे पहली स्तुतिमें श्रीऋषभदेव, श्रीशान्तिनाथ, श्रीनेमिनाथ ( अरिष्टनेमि ), श्रीपार्श्वनाथ एवं श्रीमहावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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