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________________ ५६३ ( ४ ) श्रीअजितनाथस्वामीका स्तवन ( राग-आशावरी-मारूं मन मोह्य रे श्रीविमलाचले रे-ए देशी ) पंथडों निहालुं रे बीजा जिन तणो रे, अजित अजित गुणधाम । जे तें जीत्या रे तेणे हुं जोतियो रे, पुरुष किश्युं मुज नाम-पंथ०॥१॥ चरम नयण करी मारग जोवतां रे, भूल्यो सयल संसार। जेणे नयणे कही मारग जोइए रे, नयण ते दिव्य विचार-पंथ०॥२।। पुरुष परंपर अनुभव जोवतां रे, अन्ध पलाय । वस्तु विचारे रे जो आगमे करी रे, चरण धरण नहि ढाय-पंथ०॥३॥ तर्क विचारे रे वादपरम्परा रे, पार न पहुँचे कोय । अभिमत वस्तु रे वस्तुगते कहे रे, ते विरला जग जोय पंथ० ॥४॥ वस्तु विचारे रे दिव्य नयणतणो रे, विरह पड़यो निरधार । तरतम जोगे रे तरतम वासना रे, वासित बोध आधार-पंथ० ।।५।। काललब्धि लही पंथ निहालशुं रे, ए आशा अवलम्ब । ए जन जीवे रे जिनजी! जाणजोरे,आनन्दधन-मत-अम्ब-पंथ०॥६॥ . (५) श्रीअजितनाथस्वामीका स्तवन प्रीतलड़ी बंधाणी रे अजित जिणंद शं, प्रभुपाखे क्षण एक मने न सुहाय जो। ध्याननी तालो रे लागी नेहशु, जलदघटा जेम शिवसुत वाहन दाय जो-प्रीतलडी० ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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