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________________ संति! सत्ति-कित्ति-(दित्ति)-मत्ति-जुत्ति-गुत्ति-पवर दित्त-तेअ-वंद-धेय !, सव्व-लोअ-भाविय-प्पभाव ! णेय ! पइस मे समाहि ॥१४॥ -नारायओ (१) शब्दार्थदेव-दाणविंद-चंद-सूर-वंद! | संति !-हे शान्तिनाथ ! हे देवेन्द्र, दानवेन्द्र, चन्द्र | सत्ति-कित्ति- (दित्ति)-मुत्तितथा सूर्यद्वारा वन्दना करने जुत्ति - गुत्ति - पवर ! हे योग्य ! शक्ति-प्रवर ! हे कीर्तिदाणविंद-दानवेन्द्र। चंद-चन्द्र।। प्रवर ! ( हे दीप्ति-प्रवर! ) हे सूर-सूर्य । मुक्ति-प्रवर ! हे युक्ति-प्रवर! हट्टतुट्ट! हे आनन्दस्वरूप ! हे गुप्ति-प्रवर ! जिट्ट!-हे अतिशय महान् ! सत्ति-शक्ति । कित्ति-कीर्ति । परम-लगुरूव !-हे परम सुन्दर । दित्ति- दीप्ति । )मुत्ति-- रूपवाले ! मुक्ति । जुत्ति – युक्ति । धतं-रुप्प - पट्ट - सेय - सुद्ध- गुत्ति-गुप्ति । पवर-प्रवर, निद्ध-धवल-दंत-पंति ! श्रेष्ठ । हे तपायी हुई पाटकी चाँदी जैसी उत्तम, निर्मल, चकचकित दित्त-तेअ-वंद-धेय !-हे देवऔर धवल दन्त पंक्तिवाले ! समूहसे भी ध्यान करने योग्य ! धंत-तपायी हुई, गरम की हुई। रुप्प-चाँदी । पट्ट-पाट । दित्त-दीप्त । तेअ-तेज । यहाँ सेय-उत्तम । शुद्ध-निर्मल ।। दीप्त-तेज शब्दसे देवोंको निद्ध-चिकनी, चकचकित । ग्रहण करना चाहिये । वंदधवल-उज्ज्वल, श्वेत । वृन्द, समूह । धेय-ध्येय, दन्तपंति-दन्तपंक्ति। ध्यान करनेयोग्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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