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________________ गयो । अन्तमें मुनिने उसका मर्म समझाया कि मरण निश्चित है, यह बात मैं जानता हूँ, किन्तु कब होगा, यह मैं नहीं जानता। एक समय वर्षा होने के पश्चात् अन्य बालकोंके साथ ये बालमुनि भी पत्तोंकी नाव बना कर पानीमें तिराने लगे। उस समय श्रीगौतमस्वामी उधरसे निकले, उन्हें उनके मुनिधर्मका ध्यान आया और सहसा ये लज्जित हो गये। फिर श्रीमहावीर प्रभु के पास जाकर 'ईरियावहिया' आलोचन करते हुए 'दगमट्टी दगमट्टी' ऐसा शब्दोच्चार करने लगे तब पृथ्वीकाय तथा अप्कायके जीवोंसे क्षमा माँगते हए पापका अत्यन्त पश्चात्ताप होनेसे भावनाकी परम विशुद्धि हुई और केवलज्ञानी हुए। ८ नागदत्त ( १ ) :-वाराणसी नगरीमें यज्ञदत्त नामका एक सेठ रहता था, उसकी धनश्री नामकी स्त्री थी। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम नागदत्त रखा गया। उसका विवाह नागवसु नामकी कन्याके साथ हआ। एक समय नगरका राजा अपना घोड़ा दौड़ाता हुआ जा रहा था, तब उसके कान मेंसे एक कुण्डल नीचे गिर गया। उसी मार्ग से होकर नागदत्त निकला, परन्तु उसको दूसरेकी वस्तु नहीं लेने की प्रतिज्ञा थी, इससे वह कुण्डलपर दृष्टि डाले बिना चला गया और उपाश्रयमें जाकर कायोत्सर्गमें स्थिर रहा । इसी समय नगरका कोटवाल { कोतवाल ) जो इनकी पत्नीको चाहता था, वहाँसे निकला और उसने वह कुण्डल नागदत्त के पास जाकर रख दिया। राजाने देखा तो कुण्डल मिला नहीं। फिर कोतवालने ढूँढ़नेका बहाना करके कहा कि 'महाराज ! आपका कुण्डल नागदत्तके पाससे मिल गया है' इसलिए उसको शूलीपर चढ़ाया गया, किन्तु सत्यके प्रभावसे शूलीका सिंहासन हो गया और शासनदेवीने प्रकट होकर कहा कि-'यह नागदत्त उत्तम पुरुष है, यह प्राण जानेपर भी दूसरेको वस्तुका स्पर्श नहीं कर सकता । पहले धनदत्त सेठ ने इसकी एकसौ सोनेकी मोहरें रख ली थीं और अभी कोतवालने इस पर झूठा आरोप लगाया है।' यह सुनकर राजाने उन दोनोंको दण्ड दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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