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________________ भवेद् ज्ञानान्मनोनिच्छं भावोऽनित्यादिभावनात् । शिवाय शाश्वतो ध्येयः स्वभावः परमात्मनः ॥ ९ ॥ अन्वय-ज्ञानात् मनः अनिच्छं भवेत् अनित्यादि भावनात् भावः (भवेत् ) (अतः) शिवाय परमात्मनः शाश्वतः स्वभावः ध्येयः ॥ ९ ॥ अर्थ-ज्ञानोपयोग से मन निष्काम बनेगा एवं अनित्यादि बारह भावनाओं तथा मैत्र्यादि ४ भावनाओं को भावना से अन्तिम माध्यस्थ्य भाव का प्रस्फुरण होगा। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिये परमात्मा के शाश्वत स्वभाव का ध्यान करना चाहिए । विवेचन-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संबर, निर्जरा, धर्मस्वारव्यात, लोकस्वरूप, बोधि-दुर्लभ ये १२ भावनाएं हैं। मैत्री, प्रमोद करुणा एवं माध्यस्थ्य ये चार भावनीय भाव हैं। परमात्मा के शाश्वत स्वभाव का ध्यान करने का तात्पर्य है शाश्वत स्वरूपरमणता अथवा आत्मनिष्ठ होना क्योंकि निश्चय दृष्टि से परमात्मा ही आत्मा है । इदमाध्यात्मिकं तत्त्वं परमैश्वर्यलक्षणम् । पन्था मृत्युंजयस्यायं शिवस्यावश्यमात्मनाम् । १० ॥ अन्वय-इदं आध्यात्मिकं तत्त्वं परमैश्वर्यलक्षणम् । आत्मनाम् मृत्युञ्जयस्य शिवस्य अयं पन्था अवश्यम् ।। १० । अर्थ-यह आध्यात्मिक तत्त्व परमैश्वर्य का लक्षण है एवं आत्मा की अमरता तथा उसके मोक्ष के लिए यह सुनिश्चित मार्ग है। विवेचन-आत्मा का चिन्तन मनन एवं निदिध्यासन परमात्म-भाव में रमण है क्योंकि आत्मा में परमात्मा है। यदि आत्म-भावना को निस्पृह भाव से भावित किया जाय तो अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होगी क्योंकि आत्मा के परमात्म स्वरूप में प्रतिष्ठित होने का यह भी मार्ग है। कहा गया है "आत्मानं विद्धि" "अयमेव पन्थाः”। “ नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः"। तावान् कषायविषय-हेतुर्यस्य परिग्रहः।। - तस्यापि भरतस्याऽभूत् कैवल्यमात्मभावनात् ॥ ११ ॥ अध्याय प्रथमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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