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________________ [ 681 वदनक जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकल होय ते छंदनु नाम वदनक । वदनक छंदनुं उदाहरण : अज्ज-वि नयण न गेण्हइ तरलिम, अज्ज-वि 'वयणु' न मेल्लइ भोलिम ।, अज्ज-वि थणहरु भरु न पडिच्छइ, तु-वि मुद्धहे दंसणि जगु मुज्झइ ॥३९ ___ 'हजी तो नयनोमां चंचळता आवी नथी, हजी तो वदन उपरथी भोळपण हट्युं नथी, हजी तो स्तन भरायां नथी-तेम छतां आ मुग्धाने जोईने लोको मुग्ध बनी जाय छे ।' नोंध : केटलाक पिंगलकारो समचतुष्पदीना विभागमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकलथी बनता संकुलक छंद- निरूपण करे छे । परंतु तेनो आमां ज समावेश थई जाय छे । उपवदनक जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय ते छंदनुं नाम उपवदनक । उपवदनकछंद- उदाहरण : आमूलु-वि बहु-पंकिण संवलिअ, सव्व-वार-पडिबोह-सोह-रहिअ । कंटय-सय-संसेविअ जल-सयण, जिण-'उववयण' न सोहहिं कमल-वण ॥४० __ 'जेने मूळमांथी ज बधे पुष्कळ कादव वळगेलो छे, जेमां बधो समय विकसती शोभा होती नथी. जेमां सेंकडो कंटको होय छे अने जे "जलशयन" (जळ पर स्थित) होय छे तेवां कमळो जिनदेवना वदननी पासे सहेज पण शोभतां नथी । (केम के जिनदेवनुं वदन निर्मळ, लोकोने सर्वदा प्रतिबोध करनारूं, कंटकरहित अने "अजलशयन" - एटले के जेमां जडताने सहेज पण आश्रयस्थान नथी एवं छ) । अडिला जो वदनक अने उपवदनक ए छंदोनां चारेय चरणो अथवा तो बब्बे चरणो यमकथी जोडायेलां होय तो ते छंदनुं नाम अडिला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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