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________________ हे देव ! आज्ञा पालना भी आपकी है पूजना परिशुद्ध अरु श्रद्धा विभूषित हो अगर वह पालना । आज्ञा-विराधन से बढे संसार - यह निश्चित सही आराधना से और उसकी मोक्ष निकट बने सही ।। ४ ।। अकालमियमाज्ञा ते, हेयोपादेयगोचरा । आश्रवः सर्वथा हेय- उपादेयश्च संवरः ॥५॥ आज्ञा सनातन अरु त्रिकालाबाध्य जिनवर ! आपकी, यह हेय है, आदेय यह, इतना बताती नित्य ही । 'आश्रव हमेशा हेय है' यह भाग आज्ञाका प्रथम, 'आदेय संवर है सदा'३यह भाग उसका है चरम ।। ५ ।। आश्रवो भवहेतुः स्यात,, संवरो मोक्षकारणम् । इतीयमार्हती मुष्टि- रन्यदस्याः प्रपञ्चनम् ॥६॥ आश्रव बने संसारके विस्तार का कारण महा संवर बने संसारसे निस्तार का कारण अहा ! | यह है रहस्य समग्र-तीर्थंकर-कथित-उपदेशका सब आगमों तो है इसीके विस्तरण परमार्थका ।। इत्याज्ञाराधनपरा, अनन्ताः परिनिर्वताः । निर्वान्ति चाऽन्ये क्वचन, निर्वास्यन्ति तथाऽपरे ॥७॥ पालन जिनाज्ञाका सरस करते परमपद पा लियागतकालमें बहु जीवने निज-आत्म-हित यूं कर लिया । कुछ आतमाएं पा रही है मोक्ष सांप्रतकालमें बहु आतमाएं पा सकेंगी अरु अनागत कालमें ।। ७ ।। ६० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001453
Book TitleVitragstav
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages100
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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