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________________ ३२२ न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) इसी अर्थ में अनुकर्षण और समुच्चय दोनों समान ही हैं । किन्तु कहाँ किस का अनुकर्षण/ समुच्चय करना वह 'च' के अर्थ से स्पष्ट नहीं होता है । उसकी स्पष्टता करने के लिए यह न्याय है। जहाँ सजातीय और विजातीय दोंनों का अनुकर्षण प्राप्त हो वहाँ ही इस न्याय की प्रवृत्ति होती है, किन्तु जहाँ केवल विजातीय का ही अनुकर्षण उचित प्रतीत हो या अनुकर्षण होता हो वहाँ इस न्याय को अनित्य मानना चाहिए ऐसी हमारी/अपनी मान्यता है। लोक में भी सजातीय का सजातीय के साथ ही समुच्चय होता है । अतः यह बात लोकसिद्ध होने से ज्ञापक बताने की आवश्यकता नहीं है । आचार्यश्रीलावण्यसूरिजी , श्रीहेमहंसगणि के 'यत्नान्तराकरण' को ज्ञापक के रूप में मान्य नहीं करते हैं। __ यह न्याय लोकसिद्ध ही है और व्याकरण में इसके विरुद्ध नहीं होता है। अतः अन्य परिभाषा संग्रह में इसे संगृहीत नहीं किया है। ॥११९ ॥ चानुकृष्टं नानुवर्तते ॥६२॥ 'च' कार द्वारा अनुकृष्ट पद या वाक्य का अनुवर्तन नहीं होता है। 'चकार' से अनुकृष्ट पद या वाक्य अगले सूत्र में नहीं जाता है अर्थात् अगले सूत्र में उसी पद या वाक्य की अनुवृत्ति नहीं होती है । 'अपेक्षातोऽधिकारः' न्याय से 'चकार' से अनुकृष्ट पद या वाक्य की भी अगले सूत्र में 'अनुवृत्ति' हो सकती थी, उसका निषेध करने के लिए यह न्याय है। इसमें 'पद' की अनुवृत्ति का उदाहरण इस प्रकार है । 'गडदबादेः'-२/१/७७ सूत्र में 'स्ध्वोश्च' शब्दगत 'च' से पूर्वोक्त 'पदान्ते' २/१/६४ सूत्रगत 'पदान्ते' पद का अनुकर्षण होता है । यह 'पदान्ते' पद का बाद में आनेवाले 'धागस्तथोश्च' २/१/७८ सूत्र में अनुवर्तन नहीं होता है । वस्तुतः 'च' के बिना भी ‘पदान्ते' की अनुवृत्ति हो सकती थी, तथापि अगले सूत्र में उसकी अनुवृत्ति को रोकने के लिए 'च' से अनुकर्षण किया गया है । वाक्य की अनुवृत्ति का उदाहरण इस प्रकार है -: 'सदोऽप्रतेः परोक्षायां त्वादेः' २/३/४४ सूत्रगत, 'परोक्षायां त्वादेः' वाक्य का 'स्वञ्जश्च' २/३/४५ सूत्रगत 'च' से अनुकर्षण होता है । उसी वाक्य की बाद में आनेवाले 'परिनिवेः सेवः' २/३/४६ सूत्र में अनुवृत्ति नहीं होती है। अतः 'स्वञ्ज' धातु का परोक्षा में द्वित्व होने के बाद पूर्व 'स' का 'ष' होता है किन्तु द्वितीय 'स' का 'घ' नहीं होता है। उदा. 'परिषस्वजे' जबकि 'सेव्' धातु का परोक्षा में द्वित्व होने के बाद दोनों 'स' का 'ष' होता है । उदा. परिषिषेवे । 'चकार' से अनुकृष्ट हो इसकी अनुवृत्ति आगे नहीं जाती है, किन्तु 'च' से समुच्चित हो उसकी अनुवृत्ति यथेच्छ रूप से आगे जाती है । उदा. 'मो नो म्वोश्च' २/१/६७ सूत्र में 'म्वोश्च' का 'च' 'पदान्ते' का समुच्चय करता है, अत: ‘पदान्ते' पद का 'स्त्रंसध्वंस्क्व स्स-' २/१/६८ इत्यादि सूत्र में अनुवर्तन होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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