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________________ अनुवाद [२७ अवतरित हुआ। उसका करतल चक्रसे अंकित था इसलिए उस गुणधारी बालकका नाम चक्रायुध रखा गया। वह कला, गुण और विज्ञानमें पारंगत हुआ। वह शास्त्रोंमें दक्ष और विकार रहित था। उसके चरण कछुएके समान उन्नत थे। उसका बदन प्रशस्त था । उसकी कटि सिंहके समान थी और नयन रतनारे थे। उसकी भुजाएँ हाथीकी सूंडके समान लम्बी थीं। वह गम्भीर था, धीर था और सुलक्षणोंसे युक्त था । वह श्रीवत्स-लाञ्छनसे भूषित था, तेजस्वी था और रूपसे कामदेवके समान था। कान्ति, रूप और लावण्य जब उसके अंगोंमें न समा सके तब उन्हें विधिने तीनों लोकोंमें लाकर छिड़क दिया ॥३॥ चक्रायुधकी गुणशीलता वह गौर ( वर्ण), विमल ( चित्त ), कलाओंसे युक्त एवं अत्यन्त सुन्दर था। वह गुरु, मित्र, स्वजन और माता-पिताको सुख देनेवाला था; प्रजाका वह स्वामी, पराभव, भय और मदसे रहित था; यशस्वी था. सुप्रसिद्ध था और कुमतिरूपी दोषसे दूर था । वह उत्तम गुणोंसे श्रेष्ठ, श्रीमान् और यशसे शुभ्र था; संग्रामभूमिमें शत्रुओं द्वारा मलिन नहीं किया गया था; प्रजाके हृदयमें तथा मित्रों और विद्वानोंके साथ रहता था; परधन, परस्त्री और खलपुरुषोंसे दूर था; परिजन, स्वजन और सुजनोंसे घिरा रहता था; धन-धान्य, कलाओं, गुणों और जयश्रीसे सम्पन्न था । श्रेष्ठ हाथीके समान उसकी चाल थी और सिंहके समान बलिष्ठ भुजाएँ। वह कलाओं और गुणोंका निवासस्थान था। उसे कभी किसीने छला नहीं था । वह समुद्रके समान गम्भीर और गुणयुक्त था, अवगुण और अपयशसे परे था, विनयशील था सरल ( स्वभाव ) और विमल ( चित्त ) था मानो स्पष्ट चन्द्रमा हो । वह प्रतिदिन अपने गुरु, माता और पिताके (हृदयके ) निकट रहता था। अनेक गुणोंके आगार, कलाओंसे युक्त और अनेक सुखोंकों भोगनेवाले ( चक्रायुध ) की प्रिय, मनोहर और विकसित कमलके समान मुखवाली विजया नामकी पत्नी थी। ॥४॥ चक्रायुधके सिरमें सफेद बाल, बाल द्वारा चक्रायुधका प्रतिबोध प्रतिदिन क्रीड़ा करते हुए एवं विषयसुख भोगते हुए उन दोनोंका कुछ काल स्नेहपूर्वक व्यतीत हुआ। तब धवल और उज्ज्वल देहधारी उस ( चक्रायुध ) ने अपने सिरमें चन्द्र के समान सफेद और अशोभन वाल देखा। वह हवासे था मानो कह रहा हो कि- "हे राजन् , राज्य छोड़कर कल्याणकारी दीक्षा ग्रहण कर । यह यौवन पर्वतकी नदीके प्रवाहके समान चंचल है । यह पंचेन्द्रिय सुख विषभोजनके समान है। यह जीवन, यौवन और राज्य छायाके समान सारहीन और अस्थायी हैं । यहाँ तू निश्चिन्त होकर क्यों रह रहा है ? तुरन्त ही धर्म और नियमका पालन क्यों नहीं करता ? इसीप्रकारसे तेरी वृद्धावस्था आ जायेगी। इसे अपने सिरमें सफेद बाल ही मत समझ।" "जब तक देहमें वृद्धावस्था प्रवेश नहीं करती और इन्द्रियाँ शिथिल नहीं होती तब तक, हे राजन् , तू यह सब कुछ छोड़कर धर्मकार्य कर ।" ॥५॥ चक्रायुधका अपने पुत्रको उपदेश पृथ्वीके स्वामी उस चक्रायुध राजाने सफेद बालको देखकर अपने पुत्र सूर्यायुधको बुलाया और स्नेहपूर्वक हृदयसे लगाकर कहा- "हे सुभट, धुरन्धर, भक्तिमान् , कुलशीलसे अलंकृत, गुणोंसे महान् , अब तुम इस राज्यका परिपालन करो। मैं दीक्षा ग्रहण करूँगा। स्नेह वश तुम्हें कुछ शिक्षा देता हूँ; सुनोः--बिना सोचे-विचारे तुम कुछ नहीं करना । अपराधके बिना दण्ड नहीं देना । चार प्रकारकी मन्त्रणा चार प्रकारकी मन्त्रणाओंके अनुसार विचार-विमर्श करना। कभी भी दुष्टता नहीं करना। अपने यशको नहीं गँवाना और आलसी नहीं बनना । राज्यमें अपकीर्ति नहीं करना। मित्रों और स्वजनोंमें ( अपने प्रति ) आत्मीयताका भाव उत्पन्न करना । दुष्ट संगसे दूर ही रहना । नगर पट्टन और देशको विनाशसे बचाना।" Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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