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________________ ४४ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय निश्चित होता है कि आनुपूर्वीसे चली आती कथा-परम्पराकी अपेक्षा शीलांकाचार्यके सम्मुख मौखिक, लिखित अथवा अन्य प्रकारका कोई दूसरा भी स्रोत रहा होगा । इस विषयमें अन्य ग्रन्थोंके साथ विस्तारपूर्वक तुलना न करके पाठकोंकी जानकारीके लिए प्रचलित परम्परासे भिन्न पड़नेवाले कतिपय स्थानोंका ही मैं यहाँ निर्देश करूँगाप्रस्तुत ग्रन्थमें अन्य ग्रन्थोंमें १. ऋषभस्वामीके दीक्षा-प्रसंगमें पांच मुष्टिसे केशलुंचन (पृ. ४०) १. चार मुष्टिसे केशढुंचन । २. श्रेयांसस्वामीकी माताका नाम सिरी-श्री (पृ. ९३) २-श्रेयांसस्वामीकी माताका नाम विण्हू-विष्णू ३. द्विपृष्ठ वासुदेव-विजय बलदेव, पुरुषोत्तम वासुदेव-सुप्रभ बलदेव, पुरुषसिंह ३. सभी वासुदेव एवं बल वासुदेव सुदर्शन बलदेव, पुण्डरीक वासुदेव-आनन्द बलदेव और दत्त वासुदेव- देवोंकी माताएँ पृथक नन्दिमित्र बलदेव-इन पाँचों वासुदेव बलदेवके युगलोंमेंसे प्रत्येक युगलकी एक पृथक् हैं, अर्थात् वासुदेवही माता कही गई है । अवशिष्ट चार युगलोंमेंसे त्रिपृष्ठ वासुदेव-अचल बलदेवकी बलदेवके युगल सहोदर माताके विषयमें स्पष्टता नहीं की गई है, स्वयम्भू वासुदेव-भद्र बलदेवकी माताके नहीं हैं। नामका सूचक पाठ दोनों प्रतियोंमें छूट गया है, जबकि लक्ष्मण वासुदेव-राम बलदेव तथा कृष्ण वासुदेव-बलदेव बलदेव इन दो युगलोंकी माताएँ भिन्न-भिन्न हैं ऐसा निर्देश है। ४. स्वयम्भू वासुदेव-भद्र बलदेव, लक्ष्मण वासुदेव-राम बलदेव तथा पुण्डरीक ४. प्रत्येक वासुदेव-बलदेवके वासुदेव-आनन्द बलदेव-इन तीनों युगलों से प्रत्येक युगलकी आयु समान युगलमें वासुदेवकी अपेक्षा बतलाई है; शेष युगलोंकी आयुका सूचन ही नहीं है। केवल कृष्ण वासुदेव- बलदेवकी आयु अधिक बलदेव बलदेवके युगलमें वासुदेवकी मृत्युके पश्चात् बलदेवका अस्तित्व बतलाया है। बतलाई गई है। ५. मुनिसुव्रतस्वामीकी जन्मभूमि राजगृह नगर है । (पृ. १७२) ५. कुशाग्रपुर है। किसी भी पत्नीका नाम-निर्देश न करके वर्धमान स्वामीका अनेक कन्याओंके साथ ६. वर्धमान स्वामीकी यशोदा पाणिग्रहण बतलाया है । (पृ. २७२) नामकी केवल एक ही पत्नी है। ७. अपने आवास परसे सौधर्मेन्द्र के विमानको जाते देख चमरेन्द्र क्रुद्ध होता है। ७. चमरेन्द्र के आवासके ऊपर (पृ. २९२) सौधर्मेन्द्रका विमान सदा अवस्थित रहता है। ८. चमरेन्द्र वर्धमानस्वामीकी शरणमें गया है ऐसा जानकर वज्रदेव स्वयं संरम्भसे ८. चमरेन्द्र वर्षमानस्वामीकी विरत होता है। (पृ. १९६) शरणमें गया है यह जानकर 'वज्रदेव चमरके साथ भगवान्को भी मारेगा' इस ख्यालसे सौधर्मेन्द्र सिर्फ चार अंगुल जितना अन्तर जब बाकी रहता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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