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________________ प्रस्तावना ४१ जैनागममें ऐसे महापुरुषोंके लिए 'उत्तमपुरुष' संज्ञा है, किन्तु बादमें 'शलाकापुरुष' संज्ञा विशेष रूढ हुई है। इन शलाकापुरुषोंकी संख्या श्रीमज्जिनसेनाचार्य तथा श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यने ६३ दी है । ९ वासुदेवोंके शत्रु प्रतिवासुदेवोंकी ९ संख्या ५४ में जोड़नेसे वह ६३ की संख्या बनती है। श्रीभदेश्वरसूरिने अपनी कहावली( अमुद्रित )में ९ नारदोंकी संख्या जोडकर शलाकापुरुषोंकी संख्या ७२ दी है। श्रीहेमचंद्राचार्य 'शलाकापुरुष'का अर्थ 'जातरेखाः' ऐसा करते हैं, और भद्रेश्वरसूरि 'सम्यक्त्वरूप शलाकासे युक्त' ऐसा अर्थ करते हैं। डॉ. उमाकान्तके मैतके अनुसार भवविरहसूरि (हरिभद्रसूरि ) के कथानकके साथ ही कहावलीका अन्त होता है अत एव कहावलीकार भदेश्वरसूरिका समय हरिभद्राचार्यके निकटवर्ती है । इस मतको माना जाय तब कहावलीको प्रस्तुत चउप्पन्न म० च० से पहलेकी रचना माननी पडेगी, किन्तु डॉ. उमाकान्तके कथनमें जो भ्रान्ति है उसका निवारण आवश्यक है। कहावलीका अन्त हरिभद्राचार्यके कथानकके साथ नहीं होता किन्तु वहाँ कहावलीका प्रथमपरिच्छेद समाप्त होता है भणियाओ य कहाओ रिसहाइजिणाण वीरचरिमाणं । तत्तित्थकहाहिं समं भवविरहो जाव सूरि त्ति । इय पढमपरिच्छेओ तेवीससहस्सिओ सअट्ठसओ । विरमइ कहाबलीए भदेसरसूरिरइउ त्ति॑ि ।। इन गाथाओंसे स्पष्ट होता है कि भदेश्वरसूरिने जब प्रथमपरिच्छेदको ही २३८०० श्लोकप्रमाण बनाया तब उसका शेष परिच्छेद जो अब उपलब्ध नहीं है उसमें हरिभद्राचार्यके बादके कई आचार्योका जीवन भद्रेश्वरसूरिने लिखा होगा या लिखनेका सोचा होगा। इससे यह सिद्ध होता है कि भद्रेश्वरसूरि हरिभद्राचार्यके निकटवर्ती नहीं। तीर्थंकरोंके चरित में यक्ष-यक्षिणिओंका निर्देश कहावली में है जब कि चउप्पन्न० में नहीं है इससे भी कहावली चउप्पन्न० के बाद की रचना सिद्ध होती है। कहावलीकारने चउप्पन्न ० से कथाओंका संदर्भ तथा विबुधानंदनाटक अपना कर यह सिद्ध कर दिया है कि उनके समक्ष चउप्पन्न म० च० मौजुद था । कहाबलीकार पउमचरिय, वसुदेवहिंडी, आवश्यकचूर्णि, तरंगवईकहा-संक्षेप आदि ग्रन्थोंसे शब्दशः उद्भरण लेते हैं जब कि शीलांकाचार्य वैसा नहीं करते । अतएव यह नहीं माना जा सकता कि कहावलीसे शीलांकाचार्यने उद्धरण लिया। इस दृष्टिसे भी कहावलीको चउप्पन्न की परवर्ती रचना मानना चाहिए। अधिक संभव यह है कि कहावलीकी रचना विक्रम सं. १०५० से ११५० के बीच कहीं हुई है। अतएव महापुरुषोंके चरितके वर्णन करनेवाले उपलब्ध ग्रन्थोंमें चउप्पन्न० का स्थान सर्वप्रथम है। यद्यपि श्रीजिनसेनाचार्यका महापुराण शलाकापुरुषोंका चरितवर्णन करनेवाला ग्रन्थ इससे पूर्ववर्ती है किन्तु लेखक उसे पूरा कर नहीं सके और उनके शिष्य गुणभद्राचार्यने उसे पूरा किया है जो संभवतः शीलांकाचार्यके समकालीन होंगे। अत एव एककर्तृकशलाकापुरुष या महापुरुषोंका संपूर्ण ग्रंथ प्रस्तुत शीलांकीय चउप्पन्नमहापुरिसचरिय सर्वप्रथम है ऐसा कहा जा सकता है। १ कहावलीका पाठ इस प्रकार है- चउव'स जिणा, बारस चक्की, णव पडिहरी, णव सरामा । हरिणो, चकि-हरीसु य केसु य णव नारया होंति ॥ उड्ढगई चिय जिण-राम-णारया जंतऽहोगई चेय । सणियाणा चिय पडिहरि-हरिणो दुहओ वि चक्कि त्ति ॥ न य सम्मत्तसलायारहिया नियमेणिमे जो तेण । होति सलाया पुरिसा बहत्तरी...... ॥ २ "त्रिषष्टिः शलाकाभूताः शलाकापुरुषाः, पुरुषेषु जातरेखा इत्यर्थः ।" (यशोविजयग्रन्थमालाप्रकाशित सटीक अभिधानचिन्तामणि पत्र-२८१) ३ देखी 'जैनसत्यप्रकाश'. वर्ष १७, अंक ४. पृ. ९१ वा। ४ देखो पत्तनस्थजैनभाण्डागारीयग्रन्थसूची (ओरीएन्टल इन्स्टीटयूट-बडौदा प्रकाशित ) पत्र-२४४ वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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