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________________ प्रस्तावना षष्ठ परिशिष्ट (पृ. ३६२) प्रस्तुत ग्रन्थमें श्रुतदेवता ( सरस्वती ) तथा तीर्थंकरोंकी स्तुति-वन्दना जहाँ जहाँ आती है उसका निर्देश इस परिशिष्टमें किया गया है। सप्तम परिशिष्ट (पृ. ३६३ से ३७८) इस ग्रन्थमें आई हुई ६६८'सुभाषित गाथाएँ, उनके विषय एवं स्थाननिर्देशके साथ, अकारादि क्रमसे इस परिशिष्टमें दी गई हैं। अष्टम परिशिष्ट (पृ. ३७९-८०) प्रस्तुत ग्रन्थमें जहाँ-जहाँ मुहावरे एवं लोकोक्तियोंका निर्देश हुआ है उनका उल्लेख स्थान-निर्देशके साथ अकारादि क्रमसे इसमें किया गया है। इन कहावतों और मुहावरोंमेंसे कतिपय आज भी हिन्दी-गुजरात में प्रचलित हैं। उदाहरणार्थ'किंतु विणासकाले विवरीयमई जणो होइ' = विनाशकाले विपरीतबुद्धिः; 'करगहियकंकणे दप्पणेण किं कजं?' = हाथकंगनको आरसी क्या ?, 'किं एकम्मि कयाइ वि कोसे संठाइ खग्गजुयं = एक म्यानमें दो तलवार नहीं रहती; 'मारेइ य मरन्तं' = मरनेवाला मारता है, 'जायइ जं जस्स तं तस्स' = जो जिसका सो उसका, इत्यादि । इन कहावतों एवं मुहावरोंका उद्भव एवं प्रचार मूल ग्रन्थकारसे भी पुराना होना चाहिए । शुद्धिपत्रक यंत्रके ऊपर छपते समय कभी-कभी टाइपके गिर जानेसे अथवा वैसे ही कारणवश किसी-किसी प्रतिमें कुछ अक्षर उड़ गये हैं । वैसे अक्षरोंमें र, क, ,,, ऊ और स मुख्य हैं । ऐसी क्षति प्रायः टिप्पणियोंमें विशेष हुई है । इन अशुद्धियोंको छोड़कर शेष अशुद्धियोका शुद्धिपत्रक अन्तमें (पृ. ३८१ से ३८४ तक ) दिया गया है । शुद्धिपत्रकके छप जानेके बाद भी जो अशुद्धियाँ देखनेमें आई हैं उनका निर्देश नीचे किया जाता हैपत्रांक अशुद्ध शुद्ध २४८ कहि कहि २१४ २१५ २६४ २५४ २५७ २७७ (७० (७१ २७८ (८० (८१ २८१ २९३ २९४ बुण्ण समायरिय समायरियं ३७७ शीर्षके "पकत्रम् पत्रकम् प्रस्तुतग्रंथगत वसुमतीसंविहाणय (पृ. २८९-९२) प्रकरण केवल सूप्रतिमें ही उपलब्ध है, और वह प्रति कोनोंमे त्रुटित होनेके कारण तत्तत्स्थानोंमें........ऐसा अथवा---- ऐसा रिक्त स्थान छोडा है । सद्भाग्यसे श्रीदेवचन्द्राचार्यकृतमूलशुद्धिप्रकरणटीका( रचना सं. ११४४ )गत चन्दनाकथानकके आधारपर उन रिक्त स्थानोंकी पूर्ति निम्नप्रकार होती है पंक्ति २६२ or mr m m occcw ३६० वुण्ण ३८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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