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________________ २४ ११९-२० १२० १२०-२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१-२२ अंगविज्जापइण्णयं . १६३१ (१३६) चौदह ईश्वरभूत अंग १६३२-४० (१३७) पचास प्रेष्य (१३८) पचास प्रेष्यभूत पचास प्रेष्य और पचास प्रेष्यभूत अंगोंके नाम, फलादेश और एकार्थक १६४१-५६ (१३९) छब्बीस प्रिय और (१४०) छब्बीस द्वेष्य __ छब्बीस प्रिय और छब्बीस द्वेष्य अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६५७-६२ (१४१) छब्बीस मध्यस्थ अंग और समानार्थक १६६३-६४ (१४२-४६) पृथ्वीकायिकादि अंगों के नामों का अतिदेश १६६५-६६ (१४७) बीस जंगम अंगों के नाम १६६७-७० (१४८) तेत्तीस आतिमूलिक अंगों के नाम १६७१-७२ (१४९) तेत्तीस मज्झविगाढ अंगों के नाम १६७३-७४ (१५०) तेत्तीस अंत अंगों के नाम १६७५-८६ __ (१५१) पचास मुदित और (१५२) पचास दीन पचास मुदित और पचास दीन अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६८७-९१ (१५३) बीस तीक्ष्ण अङ्ग और समानार्थक १६९२-९५ (१५४) पिचत्तर उपद्रुत (१५५) पिचत्तर व्यापन्न अङ्ग १६९६-९७ (१५६) दो दुर्गन्ध और (१५७) दो सुगन्ध अङ्ग १६९८-१७०३ (१५८) नव बुद्धिरमण (१५९) चार अबुद्धिरमण अंग और समानार्थक । १७०४-५ (१६०) ग्यारह महापरिग्रह (१६१) चार अपरिग्रह अङ्ग १७०६-७ (१६२) उन्नीस बद्ध और (१६३) सत्ताईस मोक्ष अङ्ग १७०८ (१६४-१६६) पचास स्वक, परकीय और स्वकपरकीय अङ्ग १७०९-१६ (१६७-७२) दो शब्देय, दो रूपेय, दो गन्धेय, एक रसेय, ___ दो स्पर्शेय, और एक मणेय अङ्ग और फलादेश १७१७-१९ (१७३-७५) चार वातमण, दो सद्दमण और दश वर्णेय अङ्ग १७२०-२२ (१७६) दस अग्नेय अङ्ग १७२३ (१७७) दस जण्णेय अङ्ग १७२४ (१७८-७९) दो दर्शनीय और अदर्शनीय १७२५ (१८०) दस थल अङ्ग १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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