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________________ एक्कुत्तर-सउमो संधि घत्ता संपइ तव-चरणु करेवि जाएसहि सोलहमए दिवे। तत्थाउ चवेवि छेहिल्लउ वउ पावेवि जायसि परम-सिवे ।। __ [१२] पंचम तह सव्वंग-सलक्खण वासुएव-पिय णाम सुलक्षण पय-णेउर-झंकार करती पुच्छइ णेमि-चलणे णिवडंती अक्खहि महु गय भव परमेसर जह भमियई भव्वज्ज-दिणेसर तं णिसुणेवि जिणेसरु अक्खइ हरि-पिय-पुच्छिउ गुज्झु ण रक्खइ ४ जंवूदीवहो पुव्व-विदेहए कच्छा-जणवए सीयोत्तरे थिए तहिं अरिठ्ठपुरे राउ सुवासउ वासउ णामें णं पुणु वासउ तासु सुमित्त भज्ज गुणवंतउ तसु सुसेणु जायउ पिय-भत्तउ णिसुणेवि सहसंव-वणे स-भज्जउ राउ उवहिसेणहो वंदण गउ ८ जिणवर-धम्म सुणेवि रिसि-भासिउ पुत्तहो रज्जु देवि तव-वणे गउ णउ भज्जए सुय-मोहासत्तए कइवय-दिणेहिं कालु किउ अट्टए जाय पुलिंदी विंझ-गुहाणणे दिट्टु णंदिवद्धणु चारणु वणे णिसुणेवि चिर-भवाइं सावय-वय पडिगाहेवि पुणु सण्णासें मुय अट्टमे दिवे णारिय सुक्खासिणि हुय घणमालिणि-णाम सुहासिणि पुणु इह भरहवरिसे खयरालए दाहिण-सेढिहिं पुरे ससिउरकले राउ महिंदु अणुंधरि-भजहे हुय सुय कणयमाल णिरवजहे हरिवाहणें महिंदपुर-ईसें ऊढिय सयंवरे मंगल-घोसें संजाया पिय-वल्लह कामिणि सिद्धकूडे गय सपिय णहे दिणे घत्ता चारण-रिसि-भासिय-णिय-भवई णिसुणेवि शिंदेवि जम्मु तिय। मुत्तावलि-वउ उद्धरु चरेवि अंतहिं अणसणु करेवि मुय॥ १८ जाया तइए सग्गे सुरवइ-पिय संवररायहो हिरमइ-णारिहे भुंजेवि णव-पल्लाउ स पुणु चुय तुहं संजाय-विविह-गुण-धारिहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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