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________________ रिट्ठणेमिचरिउ पुप्फयलि वियसइ सूइ-संगे उदंड वाय णह तिलय-भंगे घत्ता पोमाइय पच्छए णच्चणिहे विसमिउ सो सुह-वंधणेण । अवरोप्परु ताहं विवाहु किउ राएं धण-मणि-कंचणेण ।। [१४] तो मंदिरे थविराइरिउ आउ संघाहिउ दूरज्झिय-कसाउ तहो पावहो पा-मूले वसंत वेवि वणि-पत्थिव गय पावज लेवि वइसारिउ वइसणे इब्भकेउ थिउ रज्जु करंतु समुग्ग-तेउ मंतित्तणे धीवरु थविउ जं जे परिपुच्छिउ मंदिरे थविरु तं जे | कहि पुव्व-भवंतरे कवणु एहु उप्पण्णु जेण महु गरुउ णेहु परमेसरु कहइ ति-णाण-धारि किं मुणहि ण वग्गुर णियय णारि जइयहुं तुहुं होंतु किराय-राय ___जइयहुं विमलामल वुद्धि आय तइयहुं दरिसाविउ धम्म-मग्गु तुवुरु कतहो उरउ लग्गु घत्ता तइयहुं णिय-मरण-मणहरए विहव-भाय-भय-भंगुरए। आसीविसु विसहरु वसइ जहिं गमिउ हत्थु तहिं वग्गुरए ।। [१५] सा-वि दट्ठ वे णट्ठ वणंतराले उप्पण्णु मंति एहु एत्थु काले तं वयणु सुणेवि मगहाहिवेण किय घर-परियणहो णिवित्ति तेण णिय-सुयहो सुकेउहे दिण्णु रज्जु सयमेव अणुट्ठिउ णियय-कज्जु तव-चरणु चिण्णु जइणिंद-मग्गे उप्पण्णु मरेवि सोहम्म-सग्गे सिरिदेउ ++ णिलए विमाणे एक्वुहि-आउ-परिप्पमाणे कमला-महएवि तवध-साणे(?) विमलप्पहु विमलप्पह-विमाणे उप्पज्जइ विजुप्पह-विमाणे सो मंति सयंपहु तहिं जे थाणे तिण्णि-वि वहु-कालंतरेण आय एकोयर भायर णवर जाय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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