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________________ पंचसट्ठिमो संधि घत्ता रवि लंवइ रिउ ण समावडइ दोणु ण जाणहुं किं करइ। एक्कल्लउ अच्छइ धम्म-सुउ अज्जुणु चिंतहे पइसरइ ।। [१८] सच्चइ एइ जाम जहिं केसवु अंतरे थक्कु ताम भूरीसवु जायव-हरिण ढुक्कु लइ ओरें कमु णिवद्ध मई सीह-किसोरें धाइउ तो णारायण-भायरु जगु लंघंतु णाई खय-सायरु भिडिय परोप्परु सरवर-जालेहिं । केसरि-दीहर-णहर-करालेहिं करयर-राउ करतेहिं चावहिं सुरधणु-विब्भम-भंगुर-भावेहिं विहि-मि परोप्परु सारहि ताडिय विहि-मि परोप्परु रहवर पाडिय विहि-मि परोप्परु णिहय तुरंगम वे-वि वलु र णाई विहंगम विहि-मि परोप्परु कवयई भिण्णइं विहि-मि परोप्परु चावई छिण्णइं ८ विहि-मि चम्म-रयणइं उरे भरियज्ञ विहि-मि करेहिं करवालई धरियई पत्ता उड्डंति पडंति भमंति णहे घाय दिति सिरे उर-करहं । फर-विंदहं असिवर-विजुलहं अणुहरंति णव-जलहरहं ।। सुरव विहि-मि चमर-रयणइं रणे भग्गइं विहि-मि परोप्परु छिण्णइं खग्गइं विहि-मि परोप्परु चावई भिण्णइं विहि-मि परोप्परु कवयई छिण्णइं विण्णि-वि वावरंति कर-पहरेहिं दसणेहिं करि व हरि व वर-णहरेहिं दाढेहिं कोल व सिंगेहिं महिस व तिहिं भूविहिं सच्चइ-भूरीसव पुणु अब्भंतर-वाहिर-मग्गेहिं विग्गह-पग्गह-पमुहेहिं करणेहिं सोमयत्त-णंदणेण विरुद्धे पाडिउ जायउ वेहाविद्धं पाउ दिण्णु गले पच्चुच्चाइयु किर अप्फालहिं महिहे पडाइउ घत्ता तो वुच्चइ णरु णारायणेण सीसु धणंजय तउ तणउ । लहु छिंदहि भुय भूरीसवहो मारिउ भायरु महु-तणउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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