SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९९ पंचासीइमो संधि दिवे दिवे चिंतवइ विणासु मणे लइ जं होसइ तं होउ रणे घत्ता देंतु आसि जो पेसणइं गंगेय-दोण-किव-कण्णहं। __सो दुजोहणु अज्जु हउं उवसेव करमि किह अण्णहं॥ ९ [११] संतणु विचित्तवीरिय-अवहि परिपालिय जेण-वि सयल महि सो केम सेव अण्णहो करमि भुव जाम ताम करि वावरमि गुरु-पियर-पियामह खयहो गय सामंत सहोयर पुत्त-सय अंगई ढिल्लारीहुआई संसार-सुहई अणुभूयाई अ-पमाणइं दाणई दिण्णाई जस-कुसुमई जगे विक्खिण्णाई वर-वइरि-कुलई संतावियई वहु-सयणइं उण्णइ पावियई गुरु वंदिय देवय-पुज्ज किय महि पंडुसुयह ण समल्लविय वे वाहउ हियवउं होउ छुडु महु एवंहिं मरणु जे रज्जु फुडु घत्ता तो पोमाइउ णरवइहिं सच्चउ धयरट्ठहो पुत्तु। पोत्तउ गंगा-णंदणहो दुजोहणु होहि णिरुत्तु ।। __ [१२] दुरुज्झिय-संपय-धणिय-धणु जं कुरुव-राउ थिउ मरण-मणु तं सव्वेहिं समरारंभु किउ जोयणइं विण्णि सण्णहेवि णिउ वइरिहिं हक्कारा पट्टवेवि पुट्टिहिं हिमवंतु परिट्ठवेवि सरसइय डेर(?)रइयाओहणहो किवि विण्णवंति दुजोहणहो सेणावइ कुरुवइ को-वि करे जो खंधु समोड्डइ समर-भरे जो कंवुव-कंठु वग्घ-वयणु जो वसह-खंधु दीहर-णयणु जो गरुड-परक्कमु पवणजउ जो दुंदुहि-सायर-मेह-रउ जो दस-सय-कुंतल-विहुर-धरु जो सधर-धराधर-धीर-धरु ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy