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________________ १४४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता रुहिर-महा-णइ अंतरिउ पर-वलु णिएवि समुक्खय-कंड। को-वि तरंतु तरंतु गउ धम्म-रयणु करे करेवि तरंडउ॥ ९ तहिं पंडव-कउरव-रणे रउद्दे महि लंघेवि थिए सोणिय-समुद्दे मुहु वंधेवि भीम-धणंजयाहं किउ धाइउ सोमय-सिंजयाहं छिंदंतु रहंगई रहवराहं पज्जत्तई गत्तइं गयवराह सावरणइं हयइं उर-त्थलाई सामंतहं सिरई स-कुंडलाइं धाइउ सिहंडि मंभीस किंतु पर-वलहे पिसक्केहिं पाण लें। णिक्किवेण किवेण णव सरेहिं विद्ध तेण-वि सो सत्तहिं पडिणिसिद्ध आरुढ़ेगउतम-णंदणेण धय-दंडु छिण्णु सहुं संदणेण स-तुरंगु स-सारहि धणु-वि भग्गु तो स-फरु सिहंडें लइउ खग्गु घत्ता किवेण किवाणु विच्छिण्णु दुजोहण-णयणाणंदें। णं उप्पाय-काले णहहो णिवडिउ विज्जु-पुंजु सहुं चंदें। ___ [४] तो गउतम-णंदण-गहण-हेउ णामेण णराहिउ चित्तकेउ थिउ पुरउ सिहंडिहे विहुर-काले किउ ताडिउ णवहिं थणंतराले तो आसत्थामहो माउलेण वाणासणु छिण्णु अणाउलेण विणिवाइउ सारहि भिउडि-भीसु अवरेण खुरुप्पें खुडिउ सीसु हक्कारिउ तो धट्ठज्जुणेण कियवम्में सो-वि वलत्तणेण तो भिडिय परोप्परु सव्व-संध पंचाणण पंच व वसह स-खंध विप्फारिय-धणुह णिवद्ध-तोण णिम्मह पच्चाहणिच्चोणवोण(?) एक्कु वि एक्कहो जीविउ ण लेइ एक्कु-वि एक्कहो जिणणहं ण देइ घत्ता जायउ दुमयहो णंदणेण कह व कह व रणे किउ विवरेरउ । सारहि घायउ भग्गु रहु णाई मणोरहु कुरुवइ-केरउ ।। ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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