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________________ ८ रिडणे मिचरिउ परिरक्ख करेवि जयद्दहहो थिउ सज्जउ महु जीवग्गहहो दुक्कम्महं दुच्चरियहं भरिउ माराविउ मइं दोणायरिउ घत्ता गुणु छिंदावेवि समर-मुहे विद्दविउ सुहद्दहे तोउ। तेण णएण जुहिट्ठिलहो महि रुच्चइ होउ म होउ। [१२] ताम विओयरु अमरिस-कुद्धउ णं पंचाणणु आमिस-लुद्धउ गज्जइ जुयंत-मयरहरु जिह हउं वइरिहिं भंजमि माण-सिह मा जाहि अजाय-सत्तु-वणहो वसुमइ म होउ दुजोहणहो वारवइ म पइसउ महुमहणु कलि-केलिउ पेक्खउ अमर-गणु किं णरेण काइं णर-णंदणेण हउं जुज्झमि सहुं गुरु-णंदणेण वासर-पंचमए पंडु-अवहि भुंजावमि णीसावण्ण-महि तो दिण्ण तूर किय-कलयलई पडिलग्गइं पंडव-कुरु-वलई रउ उट्ठिउ कहि-मि ण माइयउ रण-रक्खसु णं उद्धाइयउ रुहिर-णइ जाय पहरण-वसेण णं जीह ललाविय वइवसेण ४ घत्ता पंडव-कउरव-साहणई णहे पेक्खंतहं सुरवरहं असि-कणय-कुंत-कोयंडेहिं। पहरंति सयं भुव-दंडेहिं ।। १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तेहत्तरिमो सग्गो॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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