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________________ २०६ अमितगतिविरचिता खेचरेण ततोऽवाचि यूयं यदि विचारकाः। कथयामि तदा विप्राः श्रूयतामेकमानसैः॥६ एकदा धर्मपुत्रेण सभायामिति भाषितम् । आनेतुं को ऽपि शक्तो ऽस्ति फणिलोकं रसातलात् ॥७ अर्जुनेन ततोऽवाचि गत्वाहं देव भूतलम् । सप्तभिर्मुनिभिः सार्धमानयामि फणीश्वरम् ॥८ ततो गाण्डीवेमारोप्य क्षोणों शातमुखैः शरैः। भिन्ना निरन्तरः क्षिप्रं कामेनेव वियोगिनी ॥९ रसातलं ततो गत्वा दशकोटिबलान्वितः । आनीतो भुजगाधीशो मुनिभिः सप्तभिः समम् ॥१० अभाषिष्ट ततः खेटः किं भी युष्माकमागमः । ईदृशो ऽस्ति न वा ब्रूत ते ऽवोचन्निति निश्चितम् ॥११ ७) १. युधिष्ठिरेण । ९) १. चापम् ; क धनुषम् । २. भूमि । ३. तीक्ष्णफलैः । ४. स्त्री। ११) १. विप्राः । २. द्विजाः । ३. इति ईदृश आगमो ऽस्ति । ब्राह्मणोंके इस कथनको सुनकर मनोवेग विद्याधर बोला कि हे विप्रो! यदि आप इस प्रकारके विचारक हैं, तो फिर कहता हूँ, उसे एकाग्रचित्त होकर सुनिए ॥६॥ एक समय युधिष्ठिरने सभामें यह कहा कि आप लोगोंमें ऐसा कौन है जो पातालसे यहाँ सर्पलोकके ले आनेमें समर्थ हो ।।७।। ___ यह सुनकर अर्जुनने कहा कि हे देव ! मैं पृथिवीतलमें जाकर सात मुनियोंके साथ शेषनागको यहाँ ला सकता हूँ ॥८॥ तत्पश्चात् उसने अपने गाण्डीव धनुषको चढ़ाकर निरन्तर छोड़े गये तीक्ष्ण मुखवाले बाणोंके द्वारा पृथिवीको इस प्रकारसे शीघ्र खण्डित कर दिया जिस प्रकार कि कामके द्वारा वियोगिनी स्त्री शीघ्र खण्डित की जाती है ।।९।। तत्पश्चात् वह अर्जुन पातालमें जाकर, सात मुनियोंके साथ दस करोड़ सेनासे संयुक्त शेष नागको ले आया ॥१०॥ इस प्रकार कहकर मनोवेगने ब्राह्मणोंसे पूछा कि हे विप्रो ! जैसा मैंने निर्दिष्ट किया है वैसा आपका आगम है या नहीं, यह मुझे कहिए। इसपर उन सबोंने कहा कि हमारा आगम निश्चित ही वैसा है ॥११॥ ६) ब खचरेण । ७) अ ब को for को ऽपि; अ ब ड शक्नोति । ८) ड भूतले । ९) क इ निरन्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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