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________________ AAAAAAAVAANW [९] अथ ते पत्तनं गत्वा पौराणां पुरतो ऽवदन् । पौरा युष्माभिरस्माकं व्यवहारो विचार्यताम् ॥१ पौरैरुक्ता जडा भद्रा व्यवहारो ऽस्ति कीदृशः। पते ततो वदन्ति स्म को ऽस्माकं मूर्खगोचरः॥२ अवादिषुस्ततः पौरा वार्ता स्वा स्वा निगद्यताम् । एको मूर्खस्ततो ऽवादीत् तावन्मे श्रूयतामियम् ॥३ द्वे भार्ये पिठरोदर्ये लम्बस्तन्यौ ममोजिते। वितीणे विधिना साक्षाद्वेताल्याविव भीषणे ॥४ प्राणेभ्यो ऽपि प्रिये ते मे संपन्ने रतिदायिके। सर्वाः सर्वस्य जायन्ते स्वभावेन स्त्रियः प्रियाः ॥५ बिभेम्यहं तरां ताभ्यां राक्षसीभ्यामिवानिशम् । स नास्ति जगति प्रायः शङ्कते यो न योषितः ॥६ तत्पश्चात् वे चारों मूर्ख नगरमें पहुँचकर पुरवासी जनोंके समक्ष बोले कि हे नागरिको! आप हम लोगोंके व्यवहारके विषयमें विचार करें ॥१॥ इसपर नगरवासियोंने उन मूखोंसे पूछा कि हे भद्र पुरुषो ! जिस व्यवहारके विषयमें तुम विचार करना चाहते हो वह व्यवहार किस प्रकारका है। इसके उत्तरमें उन लोगोंने कहा कि वह व्यवहार हम लोगोंकी मूर्खताविषयक है-हम लोगोंमें सबसे अधिक मूर्ख कौन है, इसका विचार आपको करना है ॥२॥ यह सुनकर नगरनिवासी बोले कि इसके लिए तुम लोग अपना-अपना वृत्तान्त कहो। तदनुसार एक मूर्ख बोला कि पहले मेरे वृत्तान्तको सुनिए ।।३।। मेरे लिए विधाताने थालीके समान विस्तीर्ण उदरवाली और लम्बे स्तनोंवाली दो स्त्रियाँ दी थीं जो साक्षात् वेतालीके समान भयानक थीं ॥४॥ __ अभीष्ट सुखको प्रदान करनेवाली वे दोनों मुझे प्राणोंसे भी अतिशय प्यारी थीं। ठीक भी है, समस्त जनके लिए सब ही स्त्रियाँ-चाहे वे सुन्दर हों या कुरूप, अनुरागिणी हों या कलहकारिणी-स्वभावसे ही प्यारी हुआ करती हैं ।।५।। मैं उन दोनों स्त्रियोंसे निरन्तर राक्षसियोंके समान डरा करता था। ठीक है, लोकमें प्रायः ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो स्त्रीसे भयभीत न रहता हो-उससे भयभीत प्रायः सब ही रहा करते हैं ॥६॥ १) अ परतो। ३) क अवादिष्ट, ड अवादिष्टस्ततः, इ अवादिष्टास्तदा; क ड इ पौरैर्वार्ता स्वां स्वां; अ श्रूयतामिदम् । ५) अ प्रियतमे; अ क ड इ रतिदायके । ६) ब चकितोऽहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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