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________________ ११८ अमितगतिविरचिता तोमरेणोदितान्येद्यः पुरः पात्रं निधाय गौः। देहि तं विव्यमाहारं वाणिजस्य ददासि यम् ॥७५ तेनेति भाषिता धेनुर्मकीभूय व्यवस्थिता। कामुकेनाविदग्धेन' विदग्धेव विलासिनी ॥७६ अवदन्ती पुनः प्रोक्ता यच्छ मे कुलदेवते।। प्रसादेनाशनं दिव्यं भक्तस्य कुरु भाषितम् ॥७७ मूकों दृष्ट्वामुनावादि प्रातर्दद्या ममाशनम् । स्मरन्तो श्रेष्ठिनो देवि त्वं तिष्ठाद्य निराकुला ॥७८ द्वितीये वासरे ऽवाचि निधायाने विशालिकाम् । स्वस्थोभूता ममेदानी देहि भोज्यं मनोषितम् ॥७९ दृष्ट्वा वाचंयमीभूतां क्रुद्धचित्तस्तदापि ताम् । द्वोपतो धाटयामास प्रेष्यकर्मकरौनसौ ॥८० वोक्षध्वमस्ये मूढत्वं यो नेवमपि बुध्यते । याचिता न पयो वत्ते गौः कस्यापि कदाचन ॥८१ ७६) १. अज्ञानेन। ७७) १. धेनुः। ७९) १. स्थालीम् । ८०) १. तोमरो निश्चलचित्तो ऽभूत् । २. क निःकासयामास । ३. क भृत्यान् । ८१) १. तोमरस्य । २. तोमरः। दूसरे दिन तोमरने गायके आगे बरतनको रखकर उससे कहा कि जो भोजन तू उस वैश्यको दिया करती है उस दिव्य भोजनको मुझे दे ॥७५।। उसके इस प्रकार कहनेपर वह गाय चुपचाप इस प्रकारसे अवस्थित रही जिस प्रकार कि मूर्ख कामीके कहनेपर चतुर स्त्री ( या वेश्या) अवस्थित रहती है ॥७६॥ इस प्रकार गायको कुछ न कहते हुए देखकर राजाने फिरसे उससे कहा कि हे कुलदेवते ! प्रसन्न होकर मुझे दिव्य भोजन दे और भक्तके कहनेको कर ॥७॥ उसको फिर भी मौन स्थित देखकर वह उससे बोला कि हे देवी! तू आज सेठका स्मरण करती हुई निराकुलतासे स्थित रह और सबेरे मुझे भोजन दे ॥७८॥ दूसरे दिन वह उसके आगे विशाल थालीको रखकर बोला कि तू अब स्वस्थ हो गयी है, अतएव मुझे इस समय इच्छित भोजन दे ॥७९॥। उस समय भी जब वह मौनसे ही स्थित रही तब उसके इस मौनको देखकर तोमरके मनमें बहुत क्रोध हुआ। इससे उसने सेवकोंको आज्ञा देकर उसे द्वीपसे बाहर निकलवा दिया ॥८॥ - इस तोमरकी मूर्खताको देखो कि जो यह भी नहीं जानता है कि माँगनेपर गाय कभी किसीको भी दूध नहीं दिया करती है ।।८।। ७५) अ तोमरेणोद्यता; क ड इ यत् for यम् । ७८) इर्दघात् । ७९) ब विशालिकम् । ८०) अ °चित्तमदापि; इ द्वीपतोद्घाटयामास । ८१) क ड इ वीक्ष्यध्व । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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