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________________ केवलज्ञान में से एक का त्याग करना ही होगा। कोई चिन्तक या दर्शन दोनों का ही स्वीकार नहीं कर सकता। मुझे लगता है कि सर्वज्ञत्व का त्याग करना चाहिए, क्योंकि जैनों ने तो केवलज्ञान पर सर्वज्ञत्व का आरोप किया है और भगवान महावीर ने आत्यन्तिक नियतिवाद का अस्वीकार किया है। कुछेक लोग कहेंगे कि जैन दर्शन भी कार्य की कारणसामग्री में नियति का स्वीकार करता ही है। हा, लेकिन यह नियति आंशिक है। यहाँ नियति का अर्थ है व्यवस्था। विश्व में अंधाधुंधी (chaos) नहीं है, पर व्यवस्था है, जिसे तर्कशास्त्र में Uniformity of Nature कहते हैं । प्रकृति के नियम (Laws of Nature) अनुसार जगत में घटनाएँ घटित होती हैं । इन नियमों में कार्यकारण का नियम प्रमुख है। जिस किसी में से जिस किसी की उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु अमुक में से अमुक की ही उत्पत्ति होती है। यह व्यवस्था है, Uniformity है। तथापि जगत की सभी घटनाएँ कहाँ और कब घटित होंगी वह आत्यन्तिक रूपेण नियत नहीं है। सर्वज्ञत्व तो ऐसी आत्यन्तिक नियति स्वीकार किए बिना घटित ही नहीं होता। ज्ञान का आनन्त्य स्वतः ज्ञेयानन्त्यनिरपेक्ष जैन सर्वज्ञत्व को अनन्तज्ञान भी मानते हैं और निरावरणज्ञान भी मानते हैं। निरावरण ज्ञान स्वयं स्वत: अनन्त है। उसका आनन्त्य ज्ञेयो (विषयों) के आनन्त्य पर निर्भर नहीं है। और भी, पतंजलि ने अपने योगसूत्र में एक विचारणीय बात कही है। उनके अनुसार सभी ही ज्ञेय विषयों को सम्मिलित करो तो भी निरावरण ज्ञान के आनन्त्य की तुलना में वे अल्प हैं । तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्य आनन्त्यात् ज्ञेयमल्पम् । (योगसूत्र ४.३१) । तात्पर्य यह कि त्रिलोकवर्ती और त्रिकालवर्ती सर्व ज्ञेयो को सम्मिलित करने से उन सभी ज्ञेयों का जो आनन्त्य होता है वे चाहे जितना भी हो, परन्तु उनका उस आनन्त्य निरावरण शुद्ध ज्ञान के आनन्त्य के आगे तुच्छ है। अत: अनन्त ज्ञेयों को जानने के कारण निरावरण शुद्ध ज्ञान का आनन्त्य जो स्थापित करते हैं वे बड़ी भूल करते हैं। उपरान्त, यदि अनन्त सुख का आनन्त्य विषयनिरपेक्ष हो तो अनन्त ज्ञान का आनन्त्य विषयनिरपेक्ष क्यों न हो ? महावीर को सर्वज्ञ मानने से धर्महानि महावीर सर्वज्ञ थे ऐसा माना गया इसलिए उन के नाम पर खगोल, भूगोल, ज्योतिष आदि की बातें आरोपित की गई। ये बातें ऐसी हैं जो आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के विरुद्ध हैं । महावीर की सर्वज्ञता को चिपकनेवाले लोग विज्ञान की खोजें गलत हैं और महावीर की (महावीर के नाम पर आरोपित) बातें सत्य हैं यह सिद्ध करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001419
Book TitleJain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagin J Shah
PublisherJagruti Dilip Sheth Dr
Publication Year2000
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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