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________________ पृष्ठ १०२ १२३ १७५ १४५ विषय पृष्ठ | विषय उक्त गाथाओंके विषयकी सूचना ८७ | वेद और कषायमार्गणामें शून्यस्थानोंका प्रकृतिस्थानसंक्रमविषयक अनुयोगद्वारोंका | निर्देश १६१ नामनिर्देश ८८ सत्कर्मस्थानोंका निर्देश १६३ स्थानसमुत्कीर्तनामें आई हुई एक गाथा बन्धस्थानोंका निर्देश १६३ __ और उसका व्याख्यान सत्कर्मस्थानोंमें संक्रमस्थानोंका विचार १६३ कौन प्रकृतिस्थान प्रकृतिसंक्रमस्थान है बन्धस्थानोंमें संक्रमस्थानोंका विचार ५६८ __ और कौन नहीं है इसका सकारण निर्देश ६१ बन्धस्थानों और सत्त्वस्थानोंमें प्रकृतिस्थानप्रतिग्रहाप्रतिग्रहप्ररूपणा ११४ संक्रमस्थानोंका विचार किस संक्रमकस्थानके कौन प्रतिग्रहस्थान सत्कर्मस्थानों में बन्धस्थानों और हैं इस बातका निर्देश ___ संक्रमस्थानोंका विचार संक्रमस्थानोंके अनुसन्धान करनेके उषायोंका निर्देश बन्धस्थानोंमें सत्कर्मस्थानों और १४४ संक्रमस्थानोंका विचार आनुपूर्वी-अनानुपूर्वीसंक्रमस्थानोंका संक्रमस्थानोंमें बन्धस्थानों और निर्देश १४४ सत्कर्मस्थानोंका विचार दर्शनमोहनीयके सद्भावमें प्राप्त होनेवाले शेष अनुयोगद्वारोंका दो गाथासूत्रों द्वारा और उसके अभावमें प्राप्त होनेवाले नामनिर्देश संक्रमस्थानोंका निर्देश स्थानसमुत्कीर्तना १७७ उपशामक और आपकसम्बन्धी संक्रमस्थानोंका निर्देश प्रकृतमें सर्वसंक्रमसे लेकर अजघन्य संक्रम। मार्गणास्थानोंमें संक्रमस्थान आदिके तकके अनुयोगद्वार क्यों सम्भव नहीं हैं जाननेकी सूचना इसका निर्देश १४७ १७८ गुणस्थानोंमें संक्रमस्थान आदिके जाननेकी सादि आदि चारका निर्देश सूचना करके कालानुयोगद्वारका संकेत १४८ स्वामित्व गतिमार्गणाके अवान्तर भेदोंमें संक्रम एक जीवकी अपेक्षा काल स्थानोंका प्रमाणनिर्देश एक जीवकी अपेक्षा अन्तर १६८ मनुष्यगतिमें सब संक्रमस्थान होते हैं। नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय __ इसका निर्देश भागाभाग एकेन्द्रियादि असंज्ञी पञ्चेन्द्रियों में कितने परिमाण २१४ संक्रमस्थान होते हैं इसका निर्देश क्षेत्र गतिमार्गणामें प्रतिग्रहस्थानों और तदु स्पर्शन २१५ भयस्थानोंके जाननेकी सूचना १५० नाना जीवोंकी अपेक्षा काल २१६ सम्यक्त्व और संयममार्गणामें उक्त नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर २१८ विषयका विचार १५२ सन्निकर्ष २२१ लेश्यामार्गणामें उक्त विषयका विचार १५३ अल्पबहुत्व २२२ वेदमार्गणामें उक्त विषयका विचार । कषायमार्गणामें उक्त विषयका विचार भुजगार प्रकृति संक्रम १५७ ज्ञानमार्गणामें उक्त विषयका विचार १५६ भुजगारके तेरह अनुयोगद्वार २२६ भव्य और आहारमार्गणामें उक्त समुत्कीर्तना विषयका विचार . १६० | स्वामित्व २२६ १७६ १.६ १८१ १४६ २१० २१३ २१४ ૨૨૬. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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