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________________ ३०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ संकममस्सिदूण परूविजमाणसंतकम्मट्ठाणाणं सांतरत्तं कुदो णव्वदे ? पढमवारसंकंतदव्वं पेक्खिदण एगसमयपबद्धादो विदियवारसंकंतदव्वस्स असंखे०भागहीणत्तवलंभादो । एगसमयपबद्धादो संकेतदव्वं पेक्खिदूण अण्णेगसमयपबद्धादो संकेतदव्यं पदेसुत्तरं पदेसहीणं वा किण्ण जायदे ? ण, तुल्लजोगीहि बद्धसमयपबद्धस्स संकमणावलियाए सव्वत्थ सरिसत्तवलंभादो। ___$ ३२६. एत्थ संदिहीए समजोगिजीवसमयपबद्धाणं पमाणमेदं | २५६/ पुणो २५६ दोण्हं पि समयपबद्धाणं पढमसमयसंकमफालिप्पहुडि जाव आवलियमेत्तरफालीणमेसा संदिही-१८ | १६ | १४ | १२ | १० || ६ |१७| ३२७. अथवा अधापवत्तभागहारो ९ एत्तियमेत्तो ति संकप्पिय एदेण [४३०४६७२१ / एत्तियमेत्तसमयपबद्धसंदिहिमोवट्टिय जहाकममुप्पाइदपढमादिफालीणमेसा संदिही दडव्वा-४७८२९६९ / ४२५१५२८ | ३७७९१३६ | ३३५९२३२ | २९८५९८४ | | २६५४२०८ | २३५९२९६ | १८८७४३६८ एदमेत्थ पहाणं, अत्थाणुमारित्तादो । एदेहि शंका-आगे कहे जानेवाले सत्कर्मस्थान संक्रमकी अपेक्षा खान्तर होते हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि पहली बार जितना द्रव्य संक्रान्त होता है उसकी अपेक्षा एक समयप्रबद्ध मेंसे दूसरी बार संक्रान्त होनेवाला द्रव्य असंख्यातवें भाग हीन पाया जाता है, इससे जाना जाता है कि प्रदेशसत्कर्मस्थान संक्रमणकी अपेक्षा सान्तर होते हैं। शंका-एक समयप्रबद्धमेंसे संक्रान्त होनेवाले द्रव्यको अपेक्षा दूसरे एक समयप्रबद्ध मेंसे संक्रान्त होनेवाला द्रव्य एक प्रदेश अधिक या एक प्रदेश हीन क्यों नहीं होता ? समाधान नहीं क्योंकि समान योगवाले जीवोंके द्वारा बांधा गया समयप्रबद्ध संक्रमणावलिके भीतर सर्वत्र समान पाया जाता है।। ६३२६. यहाँ अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा समान योगवाले दो जीवोंके दो समयप्रबद्धोंका यह प्रमाण है-२५६, २५६, पुनः दोनों ही समयप्रबद्धोंकी प्रथम समयवर्ती संक्रमफालिसे लेकर आवलिप्रमाण फालियोंकी यह संदृष्टि है१८ १६ १४ । १२ १० । १७२ १८ । १६ । १४ १२ १० । विशेषार्थ-यहां अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा आवलिका प्रमाण आठ है, इसलिये पूर्वोक्त २५६ प्रमाण एक समयप्रबद्धको आठ समयोंमें बांट दिया है। ३२७. अथवा अधःप्रवृत्त भागहारका प्रमाण ९ है ऐसा मानकर इसके द्वारा ४३०४६७२१ इतने समयप्रबद्धको भाजित करने पर क्रमसे जो प्रथम आदि फालियां उत्पन्न होती हैं उनकी यह संदृष्टि जाननी चाहिये । प्रथम फालि ४७८२९६९, द्वितीय फालि ४२५१५२८, तृतीय फालि ३७७९१३६, चतुर्थ फालि ३३५१२३२, पांचवीं फालि २९८५९८४, छठी फालि २६५४२०८, सातवीं फालि २३५९२९६, आठवीं फालि १८८७४३६८ । यह संदृष्टि यहां मुख्य है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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