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________________ २३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ हिदियाओ धरेदूण हिदो सरिसो। एवं ताव ओदारेदव्व जाव समयूणावलियमेत्तगोवच्छाओ जादाओ त्ति । * ६ २३४. संपहि एदम्हादो दव्वादो खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सम्मत्तं पडिवजिय वेछावट्ठीओ भमिय दीहुन्लोल्लणकालेणुव्वेल्लिय चरिमफालिं धरेदूण डिदस्स दव्वमसंखेजगुणं । संपहि तं मोत्तूण इमं घेत्तूण परमाणुत्तरादिकमेण अणंतभागवड्डि-असंखेजभागवड्डीहि वड्डावेदव्वं जाव तस्सेवप्पणो दुचरिमसमयम्मि गुणसंकमेण गदफालिदव्वमेतं त्थिउकसंकमण गदगोवुच्छमत्तं च वड्डिदं ति । एवं वहिदण द्विदेण अण्णेगो खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सम्मत्तं पडिव जिय वेछावहीओ भमिय दोहुव्बेल्ल णकालेणुव्वेल्लिय दोहि फालीहि सह दोगोवच्छाओ धरिय हिदो सरिसो । एवमोदारेदव्व जाव चरिमहिदिखंडयपढमसमओ त्ति । २३५. संपहि चरिमद्विदिखंडयपढमसमयम्मि वड्वाविजमाणे पढमसमयम्मि गदगुणसंकमफालिदव्वमत्तं तम्मि चेव समए त्थिउकसंकमण गदगोवच्छदव्वमेत्तं च वड्ढावेयव्य। एवं वविदण द्विदेण अवरेगो उव्वेल्लणसंकमचरिमसमयद्विदो सरिसो। संपहि एत्थ परमाणुत्तरकमेण उव्वेल्लणचरिमसमए उव्वेल्लणभागहारेण मिच्छत्तसरूवेण गददव्वमत्तं तत्थेव त्थिउक्कसंकमण गददव्वमत्तं च वड्दावेदव्यं । एवं वहिदूण दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर उत्कृष्ट उद्वेलना काल द्वारा उद्वेलनाकर चार समयकी स्थितिवाली तीन गोपुच्छाओंको धारणकर स्थित है। इस प्रकार एक समयकम एक आवलीप्रमाण गोपुच्छाओंके हो जाने तक उतारते जाना चाहिये। ६२३४. अब इस द्रव्यसे, क्षपितकर्मा शकी विधि से आकर और सम्यक्त्वको प्राप्त हो दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर फिर उत्कृष्ट उद्वेलनाकाल द्वारा उद्वेलना कर अन्तिम फालिको धारण कर स्थित हुए जीवका द्रव्य असंख्यातगुणा है। अब उस जीवको छोड़कर इस जीवकी अपेक्षा एक-एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागवृद्ध इन तीन वृद्धियों द्वारा द्रव्यको तबतक बढ़ाते जाना चाहिये जब तक उसीके अपने उपान्त्य समयमें गुणसंक्रमणके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुई फालिका द्रव्य और स्तिवुकसंक्रमणके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुआ द्रव्य बढ़ जाय । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीव के समान एक अन्य जीव है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर और सम्यक्त्वको प्राप्त हो फिर दो छयासठ सागर कालतक भ्रमणकर और उत्कृष्ट उद्वेलनाकाल द्वारा उद्वेलना कर दो फालियोंके साथ दो गोपुच्छाओंको धारण कर स्थित है । इस प्रकार अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्रथम समय तक उतारते जाना चाहिये। ६२३५. अब अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्रथम समयमें द्रव्यके बढ़ाने पर प्रथम समय में गुणसंक्रमण द्वारा अन्य प्रकृतिको प्राप्त हुआ फालिका द्रव्य और उसी समयमें स्तिवुक संक्रमणके द्वारा अन्य प्रकृतिको प्राप्त हुआ गोपुच्छाका द्रव्य बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो उद्वेलना संक्रमणके अन्तिम समयमें स्थित है। अब इसके द्रव्यमें, एक एक परमाणु अधिकके क्रमसे उद्वेलनाके अन्तिम समयमें उद्व लनाभागहारके द्वारा जितना द्रव्य मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है उसे और उसी समय स्तिवुक संक्रमणके द्वारा जो द्रव्य पर प्रकृतिको प्राप्त हुआ है उसे बढ़ावे । इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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