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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ संपहि विदिए हिदिखंडए णिवदमाणे विगिदिगोवच्छा समुप्पजदि । तिस्से पमाणे आणिजमाणे पुव्वं व अवहारवहिरिजमाणाणं ढवणा कायव्वा । णवरि अंतोकोडाकोडीअभंतरणाणागुणहाणिसलागासु पादेकं दुगुणिय अण्णोण्णेण गुणिदासु समुप्पण्णरासीए रूवूणाए दोण्हं द्विदिखंडयाणमन्भंतरणाणागुणहाणिसलागासु विरलिय पादेकं दुगुणिय अण्णोण्णागुणिदासु समुप्पण्णरासी रूवूणा, भागहारो ठवेदव्यो । एवमेदेण कमेण तिण्णि चत्तारि-पंच-छ-सत्तादि जाव संखेजसहस्सद्विदिखंडएसु अपुव्वकरणद्धाए णिवदमाणासु विगिदिगोवुच्छा समुप्पादेदव्वा । $ १४२. पुणो अषुव्वकरणं समाणिय अणियट्टिकरणमाढविय तदन्भंतरे संखेजसहस्सद्विदिखंडएसु पदिदेसु द्विदिसंतकम्ममसण्णिद्विदिवंधकम्मेण' सरिसं होदि । कुदो? साभावियादो। एक मेदेण कमेण संखेजसहस्सट्ठिदिखंडयाणि गंतूण द्विदिसंतकम्म चदु-ते-बे-एइंदियाणं डिदिबंधेण समाणं होदि । पुणो तत्तो उवरि संखेजट्ठिदिखंडयसहस्सेसु पदिदेसु पच्छा पलिदोवमट्टिदिसंतकम्मं होदि । संपहि एत्थतणविगिदिगोवुच्छापमाणे आणिजमाणे भजभागहाराणं ठवणकमो पुव्वं व होदि । णवरि अंतोकोडाकोडिअभंतरणाणागुणहाणिसलागासु विरलिय पादेकं दुगुणिय अण्णोण्णेण गुणिदासु समुप्पण्णरासीए रूबूणाए पलिदोवमेणणअंतोकोडाकोडिअभंतरणाणागुणहाणिसलागाणं उसका प्रमाण लानेके लिये पहलेकी ही तरह भाज्य-भाजक राशियोंकी स्थापना करना चाहिये। इतना विशेष है कि अन्तःकोडाकोडिके भीतरकी नानागुणहानि शलाकाओंमेंसे प्रत्येकको दूना करके परस्परमें गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो उसमें एक कम करके जो राशि आवे उससे दो स्थितिकाण्डकोंके भीतरकी नानागुणहानि शलाकाओंका विरलन करके और उनमेंसे प्रत्येकको दुना करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे एक कम राशिको भागहार स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार इस क्रमसे तीन, चार, पांच, छह, सात आदि संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंका अपूर्वकरणकालमें पतन होने पर विकृतिगोपुच्छा उत्पन्न कर लेनी चाहिए। $ १४२. फिर अपूर्वकरणको समाप्त करके अनिवृत्तिकरणका प्रारम्भ करने पर उसके अन्दर संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंका पतन होने पर स्थितिसत्कर्म असंज्ञी जीवके स्थिति बन्ध के समान होता है। क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक है। इस प्रकार इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके जाने पर स्थितिसत्कर्म चौइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, दोइन्द्रिय, और एकेन्दियके स्थितिबन्धके समान होता है। फिर उससे आगे संख्यात हजार स्थितिकाण्ड पतन होने पर बादमें पल्योपम प्रमाण स्थितिसत्कर्म होता है। अब यहां को विकृतिगोपुच्छाका प्रमाण लाने पर भाज्य और भागहारकी स्थापनाका क्रम पहलेकी ही तरह होता है। इतना विशेष है कि अन्तःकोडाकोडीके अन्दरकी नानागुणहानि शलाकाओंका विरलन करके प्रत्येकको दूना करके परस्परमें गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो, एक कम उसके भागहाररूपसे पल्योपम कम अन्तःकोडाकोडीके अन्दरको नानागुणहानि शलाकाओंको दूना करके परस्परमें ताप्रा०प्रत्योः 'मसण्णिाडिदिसंतकम्मेण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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