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________________ १०२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ एवंविहअसंखेजवस्साउअस्स चरिमसमए इत्थिवेदस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । ११०. संपहि एत्थ संचयाणुगम-भागहारपमाणाणुगमाणं णबुंसयवेदस्सेव परूवणा कायव्वा । णवरि तसहिदि भमंतो जत्थ जत्थ असंखेजवस्साउएसु उववण्णो तत्थ तत्थ णqसयवेदस्स पत्थि बंधो, देवगईए सह तब्बंधविरोहादो। णवुसयवेदबंधगद्धाए संखेजे भागे इत्थिवेदो लहइ, पुरिसित्थिवेदबंधगद्धाणं पक्खेवभूदाणं पडिभागेण 'प्रक्षेपकसंक्षेपेण' एदम्हादो करणसुत्तादो भागुवलंभादो। असंखेजवासाउएसु इत्थिवेदस्स संचयकालो असंखेजगुणहाणिमेत्तो। एदं कुदो णव्वदे ? इत्थिवेदउक्कस्सदव्वादो सोगस्स उक्कस्सदव्वं विसेसाहियमिदि उवरि भण्णमाणअप्पाबहुगसुत्तादो । असंखेजवस्साउआणमित्थिवेदबंधगद्धादो सोगबंधगद्धाओ विसेसाहियाओ त्ति जदि वि इत्थिवेदसंचयकालो संखेजगुणहाणिमेत्तो एगगुणहाणिमेत्तो वा होदि तो वि पुव्विल्लमप्पाबहुअं घडदि ति णेदमप्पाबहुअं तल्लिगमिदि चे चो क्खहि उक्कस्सदव्वण्णहाणुववत्तीदो असंखेजगुणहाणिमेत्तो त्ति घेतव्यो । ण च एसो कालो दुल्लहो, संखेजावलियमेत्तमंतरिय असंखेजबारमसंखे०वासाउप्पण्णम्मि तदुवलंभादो। तेणेत्थ संचिददव्वं इस प्रकार असंख्यात वर्षकी आयुवाले उस जीवके अन्तिम समयमें स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। ६ ११०. अब यहाँपर संचयानुगम और भागहारप्रमाणानुगमका कथन नपुंसकवेदके समान ही करना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि त्रसकाय स्थितिमें भ्रमण करते हुए जहाँ जहाँ असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ वहाँ वहाँ नपुंसकवेदका बन्ध नहीं होता, क्योंकि देवगतिके बन्धके साथ नपुसकवेदके बन्धका विरोध है। तथा नपुसकवेदके बन्धककालके संख्यात बहुभागको स्त्रीवेद प्राप्त करता है, क्योंकि प्रक्षेपभूत पुरुषवेद और स्त्रीवेदके बन्धक कालोंके प्रतिभागानुसार प्रक्षेपकसंक्षेपेण' इस करणसूत्र के अनुसार अपना अपना भाग उपलब्ध हो जाता है। शंका असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें स्त्रीवेदका संचयकाल असंख्यात गुणहानिप्रमाण है यह कैसे जाना ? समाधान–'स्त्रीवेदके उत्कृष्ट द्रव्यसे शोकका उत्कृष्ट द्रव्य विशेष अधिक है' आगे कहे जानेवाले इस अल्पबहुत्वविषयक सूत्रसे जाना। शंका-असंख्यातवर्षकी आयुवाले जीवोंमें स्त्रीवेदके बन्धककालसे शोकका बन्धककाल विशेष अधिक है। अतः यदि स्त्रीवेदका संचयकाल संख्यातगुणहानिप्रमाण हो या एक गुणहानिप्रमाण हो तो भी पूर्वोक्त अल्पबहुत्व बन जाता है, इसलिए इस अल्पबहुत्वसे यह नहीं जाना जा सकता कि असंख्यातबर्षकी आयुवालोंमें स्त्रीवेदका संचयकाल असंख्या गुणहानिप्रमाण है ? समाधान-तो फिर ऐसा लेना चाहिये कि यदि असंख्यातवर्षकी आयुवालोंमें स्त्रीवेदका संचयकाल असंख्यातगुणहानि प्रमाण न हो तो उसका उत्कृष्ट द्रव्य नहीं बन सकता, अतः स्त्रीवेदका संचयकाल असंख्यातगुणहानिप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । तथा यह काल दुर्लभ भी नहीं है क्योंकि संख्यात आवलीका अन्तर दे देकर असंख्यात बार असंख्यातवर्षकी आयु लेकर उत्पन्न होनेवाले जीवके ऐसा काळ पाया जाता है । अतः इस कालमें संचित हुआ द्रव्य संख्यातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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