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________________ गा० २२] अणुभागविहत्तीए अप्पाबहुश्रं २५७ ४२६. जहा उक्कस्साणुभागबंधे उक्कस्सोणुभागस्स अप्पाबहुओं परविदं तहा परवेयव्वं, विसेसाभावादो । तं जहा-सव्वतिव्वो मिच्छत्तकस्साणुभागबंधो । अणंताणुबंधिलोभाणुभागबंधो अणंतगुणहीणो। मायाए उकस्साणुभागबंधो विसेसहीणो । कोधुक्कस्साणु० विसेसहीणो । माणुक्कस्सा. विसेसहीणो । लोभसंजलणउक्कस्साणुभागबंधो अणंतगुणहीणो । मायाए उकस्साणु० विसेसहीणो। पञ्चक्वाणलोभ० अणंतगुणहीणो । माया० विसेसहीणो । कोधुक० विसेसहीणो। माणुकस्सा. विसेसहीणो । अपञ्चक्खाणलोभुक्कस्साणु० अणंतगुणहीणो। माया. विसेसहीणो। कोधुक्क० विसेसहीणो । माणुकस्सा. विसेसहीणो। णqस० उक्कस्साणु० अणंतगुणहीणो । अरदिउक्क० अणंतगुणहीणो। सोग० उक्कस्साणु० अणंतगुणहीणो। भय० उक्क० अणंतगुणहीणो। दुगुंछाए उक्क० अणंतगुणहीणो । इथि० उक्क० अणंतगुणहीणो । पुरिस० उक० अणंतगुणहीणहीणो। रदीए उक्क० अणंतगुणहीणो। हस्स० उक्क० अणंतगुणहीणो। एदमुक्कस्सबंधस्स अप्पाबहुअं उक्कस्साणुभागसंतस्स कधं होदि ? कथं च ण होदि ? बंधावलियादिक्कंतहिदीणं व अण्णोएणसंकमेण अणुभागस्स सरिसत्तुवलंभादो । बहुत्व है। ४२९. जैसे उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें उत्कृष्ट अनुभागका अल्पबहुत्व कहा है वैसे ही यहाँ भी कहना चाहिए। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। वह अल्पबहुत्व इस प्रकार है--मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सबसे तीब्र है। उससे अनन्तानुबन्धी लोभका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। उससे मायाका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है । उससे क्रोधका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है । उससे मानका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे संज्वलन लोभका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। उससे मायाका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे क्रोधका उत्कृष्ट अनभागबन्ध विशेष हीन है। उससे मानका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे प्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्त गुणा हीन है। उससे मायाका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे क्रोधका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे मानका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणाहीन हैं। उससे मायाका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे कोधका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे मानका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशेष हीन है। उससे नपुंसकवेदका उत्कृष्ट अनभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है उससे अरतिका उत्कृष्ट अनभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। उससे शोकका उत्कृष्ट अनभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। उससे भयका उत्कृष्ट अनभागबन्ध अनन्तगणा हीन है। उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगणा हीन है। उससे स्त्रीवेदका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है । उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट अनभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। उससे रतिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है । उससे हास्यका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अनन्तगुणा हीन है। शंका-यह तो उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अल्पबहुत्व है । यह अल्प बहुत्व उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मका कैसे हो सकता है ? समाधान-क्यो नहीं हो सकता ? जैसे बन्धावलीसे बाह्य कर्मों की स्थितियाँ परस्परके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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