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________________ २०९ गा० २२] अणुभागबंधाहियारे अंतरं . २०९ ३१५. सुगम । • जहणणेण अंतोमुहुत्त । $ ३१६. कुदो १ जहण्णाणुभागसंतकम्मिएण मुहुमणिगोदेण मिच्छत्तढकसायाणमजहण्णाणुभागं बंधिदूण अंतरिदेण अणुभागखंडयं घादिय पुणो जहण्णाणुभागसंतकम्मे कदे पुव्वुत्तरजहण्णाणुभागसंतकम्माणं विचाबस्स सव्वजहण्णंतोमुहुत्तमेत्तस्स उवलंभादो। * उक्कस्सेण असंखेजा लोगा। $ ३१७. जहण्णाणुभागसंतकम्मियस्स मुहुमेइंदियस्स परिणामपञ्चएण बदमिच्छत्तट्टकसायअजहण्णाणुभागसंतकम्मस्स असंखेज्जलोगमेत्तघादहाणपरिणामेसु असंखेजलोगमेत्तकालं परिभमिय पुणो जहण्णाणुभागहाणपाओग्गघादपरिणामेहि अणुभागसंतकम्मं धादिय जहण्णाणुभागसंतकम्मसरूवेण परिणयस्स असंखेजलोगमेत्तअंतरकालुवलंभादो। * अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंतकम्मियंतरं केवचिरं कालादो । होदि? ३१८. सुगमं । * जहरणेण अंतोमुहुत्त । 5 ३१५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । ३१६. क्योंकि जघन्य अनुभागसत्कर्मसे युक्त सूक्ष्म निगोदिया जीवके मिथ्यात्व और आठ कषायोंका अजघन्य अनुभाग बाँधकर अनुभागका काण्डकघात करके पुन: जघन्य अनुभागसत्कर्म करने पर पूर्व जघन्य अनुभागसत्कर्म और उत्तर जघन्य अनुभागसत्कर्मके बीच में सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त मात्र अन्तरकाल पाया जाता है। विशेषार्थ-इन कर्माका जघन्य अनुभाग सूक्ष्म निगोदिया जीव करता है। अनन्तर वह अजघन्य अनुभागका बन्ध कर और पुनः अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर उसका घात करके जघन्य अनुभाग कर सकता है, इसलिए इन नौ कर्मोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है। * उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। ६३१७. जघन्य अनुभागसत्कर्मवाला सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव परिणामोंके द्वारा मिथ्यात्व और पाठ कषायोंके अजघन्य अनुभागसत्कर्मका बंध करके असंख्यात लोक मात्र घातस्थान रूप परिणामोंमें असंख्यात लोकमात्र कालतक भ्रमण करके पुन: जघन्य अनुभागस्थानके योग्य घातरूप परिणामोंसे अनुभागसत्कर्मका घात करके जघन्य अनुभागसत्कर्म रूपसे परिणत हुआ। उसके असंख्यात लोकमात्र अन्तरकाल पाया जाता है। * अनन्तानुबन्धी कषायोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका अन्तरकाल कितना है ? ६३१८. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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