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________________ هم میر میر عی میعی عی بینی به عرعر عر شعر شیمی عربی کی شرعی مرمر مرمر کی هے جی بی بی بی بی حرم می जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सम्मामि० जहण्णाजहण्णाणु० ज० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । णवरि जहण्णाणु० अंतोमुहुत्तं । एवं कालाणुगमो समत्तो । एक समय है। तथा दोनों में उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अन्तर्मुहूर्त है और सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें एक समय है। उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि जघन्य अनुभागविभक्तिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-जिनके जघन्य अनुभागके कालमें एक समय शेष है ऐसे जीवोंके मनुष्य अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न होने पर वहाँ जघन्य अनुभागका एक समय काल उपलब्ध होता है और मनुष्य अपर्याप्तमें जघन्य अनुभागके कालके सिवा शेष अन्तर्मुहूर्त काल अजघन्य अनुभागका जघन्य काल है। तथा मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त जीव यदि निरन्तर उत्पन्न हों तो पल्यका असंख्यातवाँ भाग काल उपलब्ध होता है, इतने काल तक इस मार्गणामें जघन्य और अजघन्य दोनों अनुभागविभक्तियाँ सम्भव हैं, इसलिए इनमें जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका क्रमशः जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहूर्त तथा दोनोंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। वैक्रियिकमिश्रकाययोग भी सान्तर मार्गणा है और इसमें काल सम्बन्धी प्ररूपणा मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान बन जाती है, अत: वैक्रियिकभिश्रकाययोगवालोंमें मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान जाननेकी सूचना की है। श्राहारककाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अत: आहारककाययोगवालोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभाग वालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अत: आहारकमिश्रकाययोगवालोंमे जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका दोनों प्रकारका काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। अपगतवेदमें जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय ओघके समान घटित कर लेना चाहिए। तथा अपगतयेदका मोहसत्त्वकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए अपगतवेदियोंमें मोहनीयके अजघन्य अनुभागवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। अकषायी, सूक्ष्मसाम्परायिक संयत और यथाख्यातसंयतोंमें अपगतवेदियों के समान काल घटित कर लेना चाहिए। पर अकषायी और यथाख्यातसंयत मोहसत्त्वकी अपेक्षा उपशान्तकषायगुणस्थानवाले होते हैं, इसलिए इनमें जघन्य अनुभागवालोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय न प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। उपशमसम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त और सासादनका जघन्य काल एक समय है, अत: इनमें जघन्य अनुभागवालोंका जघन्य काल क्रमसे अन्तर्मुहूर्त और एक समय कहा है। तथा स्वामित्वको देखते हुए इन दोनों मार्गणाओंमे जघन्य अनुभागवालोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा इन मार्गणाओंके जघन्य और उत्कृष्ट कालको ध्यानमे रख कर इनमे अजघन्य अनुभागवालोंका अघन्य और उत्कृष्ट काल कहा है। सम्यग्मिथ्यादृष्टिके जघन्य और उत्कृष्ट कालको व स्वामित्वसम्बन्धी विशेषताको ध्यानमें रखकर वहाँ भी जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल कहा है। मात्र इनमें भी जघन्य अनुभागवालोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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