SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ अणंतगुणा । अवविद० असंखे०गुणा । असंखे०भागहा० संखे०गुणा। ६६०६. सम्मत्ताणुवादेण वेदगसम्माइट्टीसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणिक० । संखे०गुणहाणिक० असंखे गुणा । वेदगसम्मत्तं घेत्तूण अंतोमुहुत्तभंतरे संखेजगुणहाणिं कुणमाणअसंखे०जीवग्गहणादो। संखे०भागहाणि० संखेजगुणा । अणंताणु०बंधिचउकं विसंजोएमाणेसु संखे०भागहाणिं कुणमाणजीवा असंखे०गुणा किण्ण होंति ? ण, तेसिं पमाणविसयउवएसाभावेण तदग्गहणादो। असंखे०भागहाणि० असंखे०गुणा । एकवीसं पयडीणं सव्वत्थोवा संखेजगुणहाणिकम्मंसिया। संखे०भागहाणिक० संखेगुणा । असंखे०भागहाणि० असंखे गुणा । अणंताणुबंधीणं सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि । संखे गुणहाणि० संखे०गुणा असंखे०गुणा वा। संखे०भागहाणि० संखेजगुणा। असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । खइयसम्मादिट्टीसु एकवीसपयडीणं सव्वत्थोवा असंखेगुणहाणि । संखे०गुणहाणिक संखे-गुणा। संखे०भागहाणि० संखे०गुणा। असंखे०भागहा० असंखेगुणा । उवसमसम्मादिहीसु अट्ठावीसं पयडीणं सव्वत्थोवा संखे०भागहाणिकम्मंसिया। जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६६०६. सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुण हैं, क्योंकि यहाँ वेदकसम्यक्त्वको ग्रहण करके अन्तर्मुहूर्तके भीतर संख्यातगुणहानिको करनेवाले असंख्यात जीवोंका ग्रहण किया है। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शंका-अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करनेवाले जीवों में सख्यातभागहानिको करनेवाले जीव असख्यातगुणे होते हैं ऐसा क्यों नहीं ग्रहण किया ? समाधान-नहीं, क्योंकि उनका कितना प्रमाण है इस प्रकारका कोई उपदेश नहीं पाया जाता, अतः उनका ग्रहण नहीं किया। ___ इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं या असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अपेक्षा. संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy