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________________ २६५ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अंतरं पत्तेयसरीरपज्जत्ताणमसंखेजभागवड्डि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । $ ४३३. विगलिंदिएसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणिअवढि० णत्थि अंतरं । असंखे०भागवड्डि-संखे भागवड्डि-संखे०भागहाणि-संखे गुणहाणीणं जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणिक णत्थि अंतर । तिण्हं हाणीणं जह० एयस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । __$ ४३४. पंचिंदिय-पंचिं०पज. मिच्छत्त०-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि-अवढि णत्थि अंतरं । तिण्णिवडि. दोण्हं हाणीणं जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवड्डि-तिण्णिहाणिअवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। अवढि० ज० एगस०, उक० अंगुलस्स असंखे०भागो । एवं तस-तसपञ्जत्ताणं । ४३५. जोगाणुवादेण पंचमण०-पंचवचि० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि-अवढि० णत्थि अंतरं । असंखेजभागवडि-संखे भागवड्डि-संखे०भागहाणि-संखे०गुणवड्डि-संखे०गुणहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । असंखे० अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। $ ४३३. विकलेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है । असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। ६४३४. पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है । तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है। सम्यकत्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असं यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। . ६४३५. योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यात ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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