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________________ गा० २२] वडिपरूवणाए कालो ६३०५. कसायाणुवादेण चदुण्णं कसायाणमोघं । णवरि अट्ठावीसं पयडीणमसंखे०. भागहाणीए जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० कोध-माण-मायकसाईसु लोभसंजलणस्स संखे०भागहाणीए जहण्णुक० एगस० । अकसा० चउवीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणीए जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं जहाक्खाद० । ___३०६. णाणाणुवादेण मदि-सुदअण्णाणीसु छब्बीसं पयडीणं तिण्णिवड्डि-अवट्ठाणाणमोघं । असंखेज्जभागहाणीए जह० एगसमओ, उक्क एकत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणीणं जहण्णुक० एंगस० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखेज्जभागहाणीए जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखेज्जदिभागो। तिण्हं हाणीण गुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय नपुंसकवेदमें ही बनता है, अतः पुरुषवेदमें इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। अपगतवेदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इसमें दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। अपगतवेदमें दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंकी संख्यातभागहानि स्थितिकाण्डककी अन्तिम कालिके पतनके समय होती है, अतः इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। अपगतवेदमें आठ कषायोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यात. भागहानि होती हैं सो इनका काल पूर्वोक्त प्रमाण है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके सम्बन्ध में समझना चाहिये। अब रहीं सात नोकषाय और चार संज्वलन सो इनकी तीन हानियाँ होती हैं । सो इनके जघन्य और उत्कृष्ट कालका खुलासा सुगम है। ६३०५. कषायमार्गणाके अनुवादसे चारों कषायवालोंका काल ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। क्रोध, मान और मायाकषायवाले जीवोंमें लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। कषायरहित जीवोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ-चारों कषायोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिये इनमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। स्वयं असंख्यातभागहानिका भी जघन्य काल एक समय है, इसलिये भी यहाँ असंख्यातभागहानिका एक समय काल बन जाता है। लोभकी संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल दसवेंमें होता है अन्यत्र तो एक ही समय प्राप्त होता है और दसवेंमें क्रोध, मान और मायाका उदय नहीं है अतः इन तीनों कषायोंमें लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। अकषायी और यथाख्यातसंयतोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इनमें २४ प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। ६३०६. ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि और अवस्थानका काल ओधके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तीन झनियोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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