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________________ ४६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ८४०. अणंताणुकोध० जह० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० किं ज. अज० ? णियमा अज. असंखेज्जगणा । तिण्णिक० किं ज० [ अजह० ] ? णियमा जह० । एवं तिण्हं कसायाणं । ८४१. अपञ्चक्खाणकोध० जह०विहत्तियस्स चत्तारिसंज०-णवणोक० किं ज. अज० ? णियमा अज० असंखे गुणा । सत्तकसाय० किं जह• अज• ? णियमा जह० । एवं सत्तकसायाणं । ६८४२. इथि० ज०विहतियस्स सत्तणोक०-तिण्णिसंजल० किं जह० अज० ? णियमा अज० संखेगुणा । लोभसंज० किं जह• अज० ? णियमा अज० असंखे०. गुणा । एवं णवुस । ८४३. पुरिसजविहत्तियस्स तिहं संजल० किं ज. अज० ? णियमा अज० संखेज्जगणा । लोभसंज० किं जह० अज० ? णियमा अज० असंखेगणा। ६८४४. हस्सज० तिण्णिसंज०-पुरिस० किं जह० अज० ? णियमा अज० असंख्यातगुणी अधिक होती है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो अपनी जघन्यस्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । ८४०. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व. बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। ९८४१. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके चार संज्वलन और नौ नोकषायोंको स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। शेष अप्रत्याख्यानावरण मान आदि सात कषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यावरण भान आदि सात कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। ९८४२. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सात नोकषाय और तीन संज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जधन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। लोभसंज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजधन्य ? नियमसे अजघन्य होती है ? जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। इसी प्रकार नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये। ८४३. पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके तीनों संज्वलनोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। लोभ संज्वलनकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जवन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। ९८४४. हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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