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________________ जेथेघवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिवसी ३ § ९ ५३६, उवसम० मिच्छत्त- सोलसक०-गवणोक० जह० जहण्णुक्क० एस० । ज० जहण्णुक्क० अंतोमु० । सम्मत्त सम्मामि० जह० जहण्णुक्क० एस० । अज० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवं सम्मामि० । सासण० सव्वपयडीणं जह० जहण्णुक्क एगस० । अज० जह० एगस०, उक्क० छावलियाओ । मिच्छादिट्ठी • मदि०भंगो । असणि० तिरिक्खोघं । वरि श्रणंताणु० चउक्क० सम्मत्त सम्मामि० एइंदियभंगो । तथा इन दोनों लेश्यावाले जीवों के मिध्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य स्थिति इनकी क्षपणा अन्तिम समय में और अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाके अन्तिम समय में प्राप्त होती है, अतः इनके सब प्रकृतियों की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। यहां इतना विशेष जानना कि उक्त लेश्याओं में सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति उद्वेलनाकी अपेक्षा भी प्राप्त होती है । तथा उक्त लेश्याओंके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा इनमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल कहा । किन्तु चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाला जीव पीत और पद्मलेश्या के अन्तिम समय में मिथ्यात्वको प्राप्त हो सकता है अतः इनमें अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय भी कहा। जो जीव कृतकृत्यवेदकके उपान्त्य समयमें और उद्वेलनाके उपान्त्य समय में पीत और पद्मलेश्याको प्राप्त होते हैं उनके क्रमसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थिति एक समय तक पाई जाती है, अतः उक्त लेश्याओं में उक्त दो प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय कहा । तथा उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण होता है यह स्पष्ट ही है। शुक्ल लेश्यामें छह नोकषायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतन के समय उनकी जघन्य स्थिति प्राप्त होती है जो अन्तर्मुहूर्त काल तक रहती है, अतः इसके छह नोकषायों की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा। शेष कथन सुगम है । I ९५३६ उपशमसम्यग्दृष्टियों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टियों में सब प्रकतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह वलीप्रमाण है । मिध्यादृष्टियों में मत्यज्ञानियोंके समान भंग है । असंज्ञियोंमें सामान्य तिर्यंचोंके समान जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंज्ञियोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है । ३१४ विशेषार्थ — जो उपशमसम्यग्दृष्टि उपशमश्रेणी से उतर कर अनन्तर वेदकसम्यग्दृष्टि होनेवाला है उसके अन्तिम समय में सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति होती है, अतः उपशमसम्यग्दृष्टिके सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा उपशमसम्यक्त्वके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा । किन्तु इतनी विशेषता है कि उपशमश्रेणी में अनन्तानुबन्धी चतुष्कका सत्त्व नहीं पाया जाता, अतः जो प्रथमोपशमसम्यग्दृष्टि जीव तदनन्तर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करता है उसके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धी चतुsaat जघन्य स्थिति होती है । या जिन आचार्योंके मतसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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