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________________ १५.० १ छक्खडागमे वैयणाखंड १४, २, ६, ५०. यस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । चउरिं दियपज्जतयस्स जहण्णडिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहणदिबंध विसेस हिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्मद्विदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ दबंध संखेज्जगुण । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जणट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । सण्णिपंचिदियपज्जत्तयस्स जहण्णट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेत्र अपज्जतयस्स जहण्णट्ठिदिबंधों संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जतयस्स विदिबंध द्वाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूत्रेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाण विसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेस | हियाणि । उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । एबमव्व गाढअप्पात्रहुगं समत्तं । मूलपयडिअप्पात्रहुंगं सत्थान - परत्थाणभेदेण दुविहं । तत्थ सत्याणपात्रहुगं वत्तइसाम । तं जहा- - सव्वत्थोवो सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स आउअस्स जहण्णओ द्विदिबंधो । ---- विशेष अधिक है। उससे उसीके पर्याप्तका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है 1 उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्तका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके अपर्याप्तका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके अपर्याप्तका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके पर्याप्तका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे असंशी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उससे उसीके अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है | उससे उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे उसीके अपर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । उससे उसीके स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ! उससे उसीके पर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । उससे उसके स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इस प्रकार अब्वोगाढ़ अल्पबहुत्र समाप्त हुआ । मूलप्रकृति अल्पबहुत्व स्वस्थान और परस्थान के भेद से दो प्रकार है । उनमें से स्वस्थान अस्पबहुत्वको कहते हैं । यथा-- सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकी आयुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्टोक है। उससे स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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