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________________ ३५२ } छक्खंडागमे वेयणावंडं [४, २, ४, १२२ दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगभागहारो चरिमाणहाणिचरिमणिसेगस्स भागहारस्स अद्धं होदि, चरिमगुणहाणिचरिमणिसे गादो दुचरिमगुणहाणि चरिमणिसेगस्स दुगुणनुवलभादो । पुणो एदेण पमाणेण सगलपक्खेवेसु अवणिय सगलपक्खेवभागहारमेत्तविगलपक्खेवे कस्सामो । तं जहा - अंगुलस्स अखेजदिभागस्स दुभागमेत्तविगलपक्खेवे घेतण जदि एयो सगलपक्खेवो लब्भदि तो सेडीए असंखेजदिमागमेतविगलपक्खेयेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए भागल द्धोत्ता सालपक्खेवा दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगे होति । ____ संपधि तिस्से जोगट्ठाणद्धाण गवसणा कीरदे । तं जहा-- एगमगलपक्खेवस्स जदि रूवूणण्णोण्णभत्थररासिमताणि जोगट्ठाणाणि लभंति तो पुव्वभणिदमेत्तसगलपक्खवेसु केत्तियाणि जोगट्ठाणाणि लभामा ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लखें जोगट्ठाणद्वाणं होदि । जहण्णजोगट्टाणादो उवीर एत्तियमेत्ताणं जोगट्ठाणाणं चरिमजोगट्ठाणेण एगसमयं बंधिदूण चरिमगुणहाणिपढमसमए डिदो च, पुणो जहण्णेण जोगेण जहण्णजोगद्वाए च बंधिदूण दुचरिंगगुणहाणिचरिमसमए हिदो च, सरिसा। पुणो पुविल्लं मोनूण इमं घेत्तूण एत्थ परमाणुत्तरादिकमण एगविगलपक्खेवो वड्ढावेदव्वो। एत्थ विगलपक्खेव चरम गुणहानिके चरम निषेक सम्बन्धी भागहारले आधा होता है, क्योंकि, चरम गुणहानिके चरम निषेकसे द्विचरम गुणहानिका चरम निषेक दुगुणा पाया जाता है। पुनः इस प्रमाणसे सकल प्रक्षेपोमेंसे कम कर सकल प्रक्षपके भागहार प्रमाण विकल प्रक्षेत्रों को करते हैं। यथा - अंगुलके असंख्यातवे भागके द्वितीय भाग मात्र विल प्रक्षेपोंको ग्रहण कर यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र विकल प्रक्षेपों में कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र सकल प्रक्षेप विचरम गुणहानिके चरम निषेकम होते हैं । अब उसके योगस्थानाध्वानकी गवेषणा करते हैं। वह इस प्रकार है- एक सकल प्रक्षेपके यदि रूप कम अन्योन्याभ्यस्त राशि मात्र योगस्थान प्राप्त होते हैं तो पूर्वोक्त मात्र सकल प्रक्षेपोंमें कितने योगस्थान प्राप्त होंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाके अपवर्तित करने पर जो लब्ध हो उतना योगस्थानाध्वान होता है । जघन्य योगस्थानसे आगे इतने मात्र योगस्थानों में अन्तिम योगस्थानसे एक समयमें आयुको बांधकर चरम गुणहानिके प्रथम समयमें स्थित हुआ, तथा जघन्य पाग और जघन्य योगकालसे आयुको बांधकर विचरम गुणहानिके चरम समयमें स्थित हुआ, ये दोनों जीव सदृश हैं । पुनः पूर्वको छोड़कर और इसको ग्रहण कर यहां एक परमाणु अधिक इत्यादि क्रमसे एक विकल प्रक्षेप बढ़ाना चाहिये। यहां विकल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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