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________________ ४, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा [४१५ पडुच्च णत्थि अंतरं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णत्थि अंतरं । - ओरालियकायजोगीसु ओरालियपरिसादणकदीए वेउव्वियतिण्णिपदाणं णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सण तिण्णिवाससहस्साणि देसूणाणि । णवरि वेउव्वियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहणणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आहारपरिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । तेजा-कम्मइयएगपदमोघं । ओरालियमिस्सकायजोगीसु ओरालियसंघादणकदी णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समऊणं । संघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी ओघ । वेउव्वियकायजोगीसु सगपदाणं णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । वेउब्वियमिस्स जीवोंकी अपेक्षा ओबके समान है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नहीं होता। ___ औदारिककाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरके तीनों पदोंका नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम तीन हजार वर्ष प्रमाण होता है । विशेष इतना है कि वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। आहारकशरीरकी परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। तैजस व कार्मणशरीरके एक पद अर्थात् संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर ओघके समान है। औदारिकमिश्रकाययोगियों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है। वैक्रियिककाययोगियों में अपने पदोंका नाना व एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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