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________________ १६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, २. मेयवियप्पमिदि, किंतु अणंतवियप्पं । तेसु अणंतवियप्पजहण्णोहिखंधेसु अइजहण्णो एसो खंधो वरूविदो। एदम्हादो एग-दो-तिण्णिआदिपरमाणूण खंधा देसोहीए जहणियाए अविसया, जहणोहिविसयदव्वक्खंधब्बाहिरे अवठ्ठाणादो । जहण्णोहिविसयउक्कस्सक्खंधपमाणं किं ? जहण्णोहिखेतब्भंतरे जो सम्माइ पोग्गलक्खंधो सो तस्स उक्कस्सदव्यं । तत्तो एग-दोतिण्णिआदि जाव अणतपरमाणू सगुक्कस्सदव्वसंबद्धा वि संता ण जहण्णोहिणाणपरिच्छेज्जा, ओहिणाणुज्जोवबज्झखेत्ते अवट्ठाणादो । एवं जहण्णोहिदव्वपरूवणा कदा । संपहि तस्स खेत्तपरूवणा कीरदे- पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभाएण उस्सेहघणंगुले भागे हिदे एगभागो देसोहिजघण्णखेत्तं । कुदो एदं णव्वदे ? ओगाहणा जहण्णा णियमा दु सुहमणिगोदजीवस्स । जदेही तदेही जहणिया खेत्तदो ओही' ॥ ४ ॥) वह अनन्त विकल्परूप है। उन अनन्त विकल्परूप जघन्य अवधिस्कन्धोंमें यह स्कन्ध अति जघन्य कहा गया है । इस स्कन्धसे एक, दो, तीन आदि परमाणुओंके स्कन्ध जघन्य देशावधिके विषय नहीं हैं, क्योंकि, वे जघन्य अवधिके विषयभूत द्रव्यस्कन्धके बाहिर अवस्थित हैं। शंका-जघन्य अवधिके विषयभूत उत्कृष्ट स्कन्धका प्रमाण क्या है ? समाधान-जघन्य अवधिक्षेत्रके भीतर जो पुद्गल स्कन्ध समाता है वह उसका उत्कृष्ट द्रव्य है। उससे एक, दो, तीन आदि अनन्त परमाणु तक अपने उत्कृष्ट द्रब्यसे सम्बद्ध होते हुए भी जघन्य अवधिज्ञानके द्वारा जानने योग्य नहीं हैं, क्योंकि, वे अवधिशानके उद्योतसे बाह्य क्षेत्रमें स्थित हैं। इस प्रकार जघन्य अवधिद्रव्यकी प्ररूपणा की गई है। _ अब देशावधिज्ञानकी क्षेत्रप्ररूपणा की जाती है- उत्सेध घनाङ्गलमें पल्योपमके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर एक भाग प्रमाण देशावधिका जघन्य क्षेत्र होता है । शंका- यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान - नियमसे सूक्ष्म निगोद जीवकी जितनी जघन्य अवगाहना होती है उतना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य अवधि है ॥ ४॥ १ सहमणिगोदअपजत्तयस्स जादस्स तदियसमयम्हि । अवरोगाहणमाणं जहण्णयं ओहिखेतं तु ॥ गो. जी. ३७८. जावइया तिसमयाहारगस्स मुहुमस्स पणगजीवस्स । ओगाहणा जहण्णा ओहीखेतं जहण्णं तु ॥ विशे. मा. ५९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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