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________________ ४, १, ७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा सादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीव पडुच्च जहण्णेण एक्कत्तीस-बत्तीससागरोवमाणि बिसमऊणाणि । उक्कस्सेण बत्तीस-तेत्तीससारोवमाणि समऊणाणि । तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च सग-संगजहण्णुक्कस्सहिदीओ। सवढे वेउब्वियसंपादणकदी मणुसपज्जत्तमंगो। संघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण तेत्तीसं सागरोवमाणि तिसमऊणाणि । उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि समऊणाणि । तेजा-कम्मइयसंघादण परिसादणकदी णाणाजीव पड्डुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च सगढिदी । एइंदियाणं तिरिक्खभंगो। णवरि ओरालियसंघादण-परिसादणकदी एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बावीसवस्ससहस्साणि समऊगाणि । बादरेइंदियाणं एइंदियभंगो। णवरि तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेजाओ ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीओ। एवं बादरेइंदियपज्जत्ताणं । णवरि तेजा-कम्मइयसंघादण नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे दो समय कम इकतीस व दो समय कम बत्तीस सागरोपम काल है । उत्कर्षसे एक समय कम बत्तीस और एक समय कम तेतीस सागरोपम काल है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा उसका जघन्य व उत्कृष्ट काल अपनी अपनी जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। सर्वार्थसिद्धि विमानमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी कालप्ररूपणा मनुष्य पर्याप्तोंके समान है। संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम तेतीस सागरोपम तथा उत्कर्षसे एक समय कम तेतीस सागरोपम काल है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है और एक जीवकी अपेक्षा अपनी स्थिति प्रमाण काल है। एकेन्द्रिय जीवोंमें औदारकादि शरीरोंकी कृतियोंके कालकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है । विशेष इतना है कि उनमें औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक कम बाईस हजार वर्ष काल है। बादर एकेन्द्रिय जीवोंमें कालकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है। विशेषता केवल इतनी है कि इनमें तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र काल है, जो काल असंख्पात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल प्रमाण है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि तैजस व कार्मण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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