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________________ ३१२) छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ६६. एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा । पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीणं णेरइयभंगो । कायजोगीणमेइंदियभंगो । णवरि जहण्णमंतरं एगसमओ । ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगीणं कदिसंचिदाणं एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि । वेउव्वियकायजोगीणं एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्टा । वेउव्वियमिस्सकायजोगीणं अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बारस मुहुत्ताणि । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीणं तिण्णिपदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियÉ देसूणं । कम्मइयकायजोगीणं कदिसंचिदाणं अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहण तिसमऊणं, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणीउस्सप्पिणीओ। अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुदभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण काल तक होता है। पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी जीवोंकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है। काययोगियोंकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है। विशेषता इतनी है कि इनका जघन्य अन्तर एक समय होता है। औदारिककाययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी कृतिसंचित जीवोंका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तेतीस सागरोपमोसे कुछ अधिक है। वैक्रियिककाययोगियोंका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे बारह मुहूर्त प्रमाण अन्तर होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे दश हजार वर्षांस कुछ अधिक और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है । आहारकाययोगी और आहारमिश्रकाययोगी तीनों पदवालोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व प्रमाण उक्त जीवोंका अन्तर होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। कार्मणकाययोगी कृतिसंचितोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात उत्सर्पिणी. अवसर्पिणी काल तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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