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________________ १९२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १,४५. संपहि णाम- ट्ठवणा दव्व-भावंगसुदभेएण चउविहमंगसुदणाणं । आदिल्ला तिष्णि विणिक्खेवा दव्वट्ठियणयपहवा, भावणिक्खेवो पज्जवट्ठियणयसमुब्भूदो । तत्थ णिक्खेवट्ठो वुच्चदे - अंगसद्दो अप्पाणम्मि वट्टमाणो णामंगं । तमेदं ति बुद्धीए अण्णत्थ समारोविदं ट्ठवर्णनं । अंगसुदपारओ अणुवज्जुत्तो भट्टाभट्ठेसंसकारो आगमदव्वंगं | जाणुगसरीरं भवियवट्टमाण-समुज्झाद' णोआगमदव्वंगं । कधमेदिर्सि अंगसण्णा ? आधारे आधेयोवयारादो । जदि एवं तो णोआगमत्तं ण घडदे, अंगागमाणमभेदादो ? ण, जीवदव्वस्स सदो अभिण्णआगमभावस्स भट्टाभट्ठसंसकारस्स आगमसण्णिदस्स पडिसेहफलत्तादो । होदु णाम सरीरस्स णोआगमत्तमंगसुदत्तं च, ण भविस्सकाले अंगसुदपारयस्स गोआगमत्तं, उवयारेण आगम अब नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव अंगश्रुतके भेदसे अंगश्रुतज्ञान चार प्रकार है । आदिके तीनों निक्षेप द्रव्यार्थिक नयके निमित्त से होनेवाले हैं, तथा भावनिक्षेप पर्यायार्थिक नयसे उत्पन्न है । उनमें निक्षेपके अर्थको कहते हैं - अपने आपमें रहनेवाला अंग शब्द नाम अंग है । ' वह यह है ' इस प्रकार बुद्धिमें आरोपित अन्य अर्थका नाम स्थापना अंग है । जो जीव अंगश्रुतके पारंगत, उपयोग रहित व भ्रष्ट अथवा अभ्रष्ट संस्कार से सहित है वह आगम द्रव्य अंग है । भव्य, वर्तमान और त्यक्त शायकशरीर नोआगमद्रव्यअंग है । शंका- इनकी अंग संज्ञा कैसे सम्भव है ? समाधान - आधार में आधेयका उपचार करने से इनकी अंग संज्ञा उचित है । शंका- यदि ऐसा है तो उनके नोआगमपना घटित नहीं होता, क्योंकि, अंगके आगमसे कोई भेद नहीं है ? समाधान — नहीं, क्योंकि, उसका प्रयोजन स्वतः आगमभाव से अभिन्न, भ्रष्ट व अभ्रष्ट संस्कारवाले तथा आगम संज्ञासे युक्त जीव द्रव्यका प्रतिषेध करना है । शंका- शरीरके नोआगमत्व और अंगश्रुतत्व भले ही हो, किन्तु भविष्य काल में अंगश्रुतके पारगामी होनेवाले जीवके नोआगमपना सम्भव नहीं है, क्योंकि, वहां उपचार से Jain Education International १ प्रतिषु भट्टाभट्ट ' इति पाठः । २ अ - काप्रत्योः समज्झादं ' इति पाठः । " • ३ आप्रतौ सद्दो' इति पाठः । For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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