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________________ ९०] - छक्खंडागमे वैयणाखंड [१, १,२४. मणुक्कट्ठफलं । एदेसिमुग्गतवाणं जिणाणं णमो इदि उत्तं होदि । णमो दित्ततवाणं ॥ २३ ॥ दीप्तिहेतुत्वाद्दीप्तं तपः । दीप्तं तपो येषां ते दीप्ततपसः । चउत्थ-छट्ठमादिउववासेसु कीरमाणेसु जेसिं तवजणिदलद्धिमाहप्पेण सरीरतेजो पडिदिणं वदि धवलपक्खचंदस्सेव ते रिसओ दित्ततवा । तेसिं ण केवलं दित्ती चेव वड्डदि, किंतु बलो वि वड्डदि; सरीरबल-मांस-रुहिरोवचएहि विणा सरीरदीत्तिवुड्डीए अणुववत्तीदो । तेण ण तेसिं भुत्ती वि, तक्कारणाभावादो। ण च भुक्खादुक्खुवसमणटं भुंजंति, तदभावादो । तदभावो कुदो वग्गम्मदे ? दित्ति-बल-सरीरोवचयादो । तेसिं दित्ततवाणं मण-वयण-कोएहिं णमो । ((णमो तत्ततवाणं ॥ २४ ॥ फल मोक्ष है, अन्य अनुत्कृष्ट फल है। इन उग्रतप ऋद्धि धारक जिनोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अभिप्राय है। दीप्ततप ऋद्धि धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ २३ ॥ दीप्तिका कारण होनेसे तप दीप्त कहा जाता है । दीप्त है तप जिनका वे दीप्ततप हैं। चतुर्थ व छट्ठम आदि उपवासोंके करनेपर जिनका शरीरतेज तप जनित लब्धिके माहात्म्यसे प्रतिदिन शुक्ल पक्षके चन्द्र के समान बढ़ता जाता है, वे ऋषि दीप्ततप कहलाते हैं। उनकी केवल दीप्ति ही नहीं बढ़ती है, किन्तु बल भी बढ़ता है, क्योंकि, शरीरबल, मांस और रुधिरकी वृद्धिके विना शरीरदीप्तिकी वृद्धि हो नहीं सकती। इसीलिये उनके आहार भी नहीं होता, क्योंकि, उसके कारणोंका अभाव है। यदि कहा जाय कि भूखके दुखको शान्त करनेके लिये वे भोजन करते हैं, सो भी ठीक नहीं है। क्योंकि, उनके भूखके दुखका अभाव है। शंका-उसका अभाव कहांसे जाना जाता है ? समाधान-दीप्ति, बल और शरीरकी वृद्धिसे वह जाना जाता है। उन दीप्ततप ऋद्धिधारकोंको मन, वचन और कायसे नमस्कार हो । तप्ततप ऋद्धिधारकोंको नमस्कार हो ॥ २४ ॥ १ प्रतिषु ' पदादीणं ' इति पाठः । २ बहुविहउवत्रासेहिं रविसमवइंतकायकिरणोघो । काय-मण-वयणबलिणो जीए सा दित्ततवरिद्धी ॥ ति. प. ४-१०५२. महोपवासकरणेऽपि प्रवर्धमानकाय-वाङ्मानसबलाः विगन्धरहितवदनाः पद्मोत्पलादिसुरभिनिश्वासाः अप्रच्युतमहादीप्तिशरीराः दीप्ततपसः । त. रा. ३, ३६, २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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