SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना टीकाकारने इस मंगलदण्डकको देशामर्शक मानकर निमित्त, हेतु, परिमाण व नामका भी निर्देश कर द्रव्य, क्षेत्र, काल व भावकी अपेक्षा कर्ताका विस्तृत वर्णन किया है, जो जीवस्थानके व विशेषकर जयधवला ( कषायप्राभृत ) के प्रारम्भिक कथनके ही समान है । सूत्र ४५ में बतलाया है कि अग्रायणीय पूर्वकी पंचम वस्तुके चतुर्थ प्राभृतका नाम कमप्रकृति है । उसमें कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति आदि २४ अनुयोगद्वार हैं । इनमें प्रथम कृतिअनुयोगद्वार प्रकृत । इस सूत्र की टीका करते हुए वीरसेन स्वामीने उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नयकी उसी प्रकार पुनः विस्तारपूर्वक प्ररूपणा की है जैसे कि जीवस्थान के प्रारम्भ में एक वार की जा चुकी है । सूत्र ४६ में नामकृति, स्थापनाकृति, द्रव्यकृति, गणनकृति, ग्रन्थकृति, करणकृति और भावकृति, ये कृतिके सात भेद बतलाये हैं । इनकी संक्षिप्त प्ररूपणा इस प्रकार है १ एक व अनेक जीव एवं अजीवमेंसे किसीका ' कृति ' ऐसा नाम रखना नामकृति है । २ काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोत्तकर्म, लेप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, मित्तिकर्म, 'दन्तकर्म व भेंडकर्ममें सद्भावस्थापना रूप तथा अक्ष एवं वराटक आदिमें असद्भावस्थापना रूप 4 यह कृति है ' ऐसा अभेदात्मक आरोप करना स्थापनाकृति कहलाती है । 1 ३ द्रव्यकृति आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है । इनमें आगमद्रव्यकृतिके स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्यसम, नामसम और घोषसम, ये नौ अधिकार हैं । यहां वाचनोपगत अधिकारकी प्ररूपणा में व्याख्याताओं एवं श्रोताओंको द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव रूप शुद्धि करनेका विधान बतलाया गया है । आगे चलकर स्थित व जित आदि उपर्युक्त अधिकारों विषयक वाचना, पृच्छना, प्रतीच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति ब धमकथा आदि रूप उपयोगोंकी प्ररूपणा है । नोआगमद्रव्यकृति ज्ञायकशरीर, भावी और तदूव्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है । इनमें से ज्ञायकशरीरन आगमद्रव्यकृतिके भी आगमद्रव्यकृतिके ही समान स्थित जित आदि उपर्युक्त नौ अधिकार कहे गये हैं। कृतिप्राभृतके जानकार जीवका च्युत, च्यावित एवं त्यक्त शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यकृति कहा गया है । जो जीव भविष्यत् काल में कृतिअनुयोगद्वारोंके उपादान कारण स्वरूप से स्थित हैं, परन्तु उसे करता नहीं है; वह भावी नोआगमद्रव्यकृति है । तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकृति ग्रन्थिम, वाइम, वेदिम, पूरिम, संघातिम, अहोदिम, निक्खोदिम, ओवेल्लिम, उद्वेल्लिम, वर्ण, चूर्ण और गन्धविलेपन आदिके मेदसे अनेक प्रकार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy