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________________ ३, ३२४.1 आहारमग्गणाए बंधसामित्तं [३९५ बंधो, एत्युदयाभावादो। थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्काणं णिरंतरो बंधो, अणेगसमयबंधसत्तिसंजुत्तत्तादो। तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुग्वि-णीचागोदाणं मिच्छाइट्ठीसु सांतरणिरंतरो, तेउ-वाउकाइएसु विग्गहं काऊणुप्पण्णाणं तदो विग्गहगईए गयाणं सत्तमपुढवीदो विग्गहं काऊण णिग्गयाणं च णिरंतरबंधुवलंभादो। सासणम्मि सांतरो, एगसमएण वि बंधुवरमसत्तिदसणादो । सेसाणं पयडीणं बंधो सव्वत्थ सांतरो, साभावियादो । पच्चया सुगमा । तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोवाणं तिरिक्खगइसंजुत्तो । चउसंठाण-चउसंघडणाणं तिरिक्खमणुसगइसंजुत्तो। इत्थिवेदस्स दुगइसंजुत्तो, देव-णिरयगईणमभावादो । अप्पसत्थविहायगइदुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं बंधो मिच्छाइट्ठिम्हि सासणे दुगइसंजुत्तो, देव-णिरयगईणमभावादो। थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्काणं मिच्छाइट्ठिम्हि सासणे दुगइसंजुत्तो, णिरय-देवगईणमभावादो। चउगइमिच्छाइटि-सासणसम्मादिट्ठिणो सामी। बंधद्धाणं बंधवोच्छेदट्ठाणं च सुगमं । धुवबंधीणं बंधो मिच्छाइट्टिम्हि चउविहो । सासणे तिविहो, होता है, क्योंकि, यहां उनका उदयाभाव है। स्त्यानगृद्धित्रय और अनन्तानुबन्धिचतुष्कका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ये अनेक समयरूप बन्धशक्तिसे संयुक्त हैं। तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका मिथ्यादृष्टियोंमें सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, तेजकायिक और वायुकायिक जीवोंमें विग्रह करके उत्पन्न हुए, उनमेंसे विग्रहगतिमें गये हए, तथा सप्तम प्रथिवीसे विग्रह करके निकले हुए जीवोंके उनका निरन्तर बन्ध पाया जाता है । सासादन गुणस्थानमें उनका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे भी बन्धविश्रामशक्ति देखी जाती है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सर्वत्र सान्तर होता है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। प्रत्यय सुगम हैं । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतका तिर्यग्गतिसे संयुक्त बन्ध होता है। चार संस्थान और चार संहननका तिर्यग्गति और मनुष्यगतिसे संयुक्त बन्ध होता है। स्त्रीवेदका दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, यहां उक्त दोगुणस्थानोंमें देव व नरक गतिके बन्धका अभाव है । अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका बन्ध मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें दो गतियोंसे संयुक्त होता है, क्योंकि, देव वनरक गतिके बन्धका अभाव है । स्त्यानगृद्धित्रय और अनन्तानुबन्धिचतुष्कका मिथ्थादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, नरक व देव गतिके बन्धका अभाव है। चारों गतियों के मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं । बन्धाध्वान व बन्धव्युच्छेदस्थान सुगम हैं। ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका बन्ध मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका होता है। सासादन गुणस्थानमें तीन प्रकारका बन्ध , प्रतिषु ' संजुत्तादो' इति पाठः। २ प्रतिषु 'तरो' इति पाठः । है आप्रतौ - मिठाइहिन्दि चउन्विहो सासणे ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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