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________________ ४४०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ७, २००. हेट्ठिम दोहि रज्जूहि सह उवरि सत्तरज्जुफोसणुवलंभादो । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २००॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २०१॥ सुगम, वट्टमाणकाले पडिबद्धत्तादो । दिवड्डचोदसभागा वा देसूणा ॥ २०२ ॥ कुदो ? मेरुमूलादो पहापत्थडस्स दिवड्डरज्जुमेत्तमुवरि चडिदण अबढाणादो । सणक्कुमार-माहिंदाणं पढमिंदयदेवेसु तेउलेस्सिएसु उप्पाइज्जमाणे सादिरेयदिवड्डरज्जुखेतं किण्ण लब्भदे ? ण, सोहम्मादो थोवं चेव हाणमुवरि गंतूण सणक्कुमारादिपत्थडस्स अवट्ठाणादो। कधमेदं णव्वदे ? अण्णहा देसूणत्ताणुववत्तीदो । मारणंतिय-उववादहिदवासद्दा वुत्तसमुच्चयत्था दट्टव्वा । मेरुमूलसे नीचे दो राजुओंके साथ ऊपर सात राजु स्पर्शन पाया जाता है। उपपादकी अपेक्षा तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥२०॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥२०१॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालसे संबद्ध है। अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ।।२०२॥ क्योंकि, मेरुमूलसे डेढ़ राजुमात्र ऊपर चढ़कर प्रभा पटलका अवस्थान है । शंका-सानत्कुमार-माहेन्द्र कल्पोंके प्रथम इन्द्रक विमानमें स्थित तेजोलेश्यावाले देवोंमें उत्पन्न करानेपर डेढ़ राजुसे अधिक क्षेत्र क्यों नहीं पाया जाता ? समाधान-नहीं, क्योंकि, सौधर्म कल्पसे थोड़ा ही स्थान ऊपर जाकर सान. त्कुमार कल्पका प्रथम पटल अवस्थित है। शंका-यह कैसे जाना जाता ? समाधान-क्योंकि, ऐसा न माननेपर उपर्युक्त डेढ़ राजु क्षेत्रमें जो कुछ न्यूनता बतलाई है वह बन नहीं सकती। मारणान्तिक और उपपाद पदोंमें स्थित वा शब्द उक्त अर्थके समुच्चयके लिये जानना चाहिये । १ अआप्रयोः ‘पदमेंदयदेवेसु ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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